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________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [239 [326 प्र. भगवन् ! गणिमप्रमाण क्या है ? [326 उ.] आयुष्मन् ! जो गिना जाए अथवा जिसके द्वारा गणना की जाए, उसे गणिमप्रमाण कहते हैं / वह इस प्रकार है - एक, दस, सौ, हजार, दस हजार, लाख, दस लाख, करोड़ इत्यादि / 327. एतेणं गणिमप्पमाणेणं कि पओयणं ? एतेणं गणिमप्पमाणेणं भितग-भिति-भत्त-वेयण-आय-व्वयनिस्विसंसियाणं दवाणं गणिमप्पमाणनिवित्तिलक्खणं भवति / से तं गणिमे / [327 प्र.] भगवन् ! इस गणिमप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? [327 उ.] अायुष्मन् ! इस गणिमप्रमाण से भत्य--नौकर, कर्मचारी ग्रादि की वृत्ति, भोजन, वेतन के आय-व्यय से सम्बन्धित ( रुपया, पैसा आदि ) द्रव्यों के प्रमाण की निष्पत्ति होती है। यह गणिमप्रमाण का स्वरूप है। विवेचन...-भाप, नील और नापने से जिन वस्तुओं के परिमाण का निश्चय नहीं किया जा सकता, उनको जानने के लिये गणिम ( गणना ) प्रमाण का उपयोग होता है। जैसे ग्राम के वृक्ष को और आम के फल को आम कहते हैं, वैसे ही गणिमप्रमाण के द्वारा जिस वस्तु की गणना होती है और जिस साधन द्वार। उस वस्तु की गणना की जाती है, दोनों गणिम कहलाते हैं / इस अपेक्षा से गणिस शब्द की भी व्युत्पत्ति के दो रूप हैं . कर्ममाधन और करणसाधन / 'गण्यते संख्यायते यत् तत् गणिमम्' जिसकी गणना की जाती है, वह गणिम है, इस प्रकार से कर्मसाधन में गणिम की व्युत्पत्ति की जाती है तव रुपया आदि गणनीय वस्तुएँ गणिम शब्द की वाच्यार्थ होती हैं और 'गण्यते संख्यायये वस्त्वनेनेति गणिमम्' जिसके द्वारा वस्तु गिनी जाती है वह गणिम है, इस प्रकार करणसाधन व्युत्पत्ति करने पर रुपया आदि जिस संख्या के द्वारा गिने जाते हैं, वह एक, दो, तीन, दस, सौ आदि संख्या गणिम शब्द की वाच्यार्थ होती है। इस प्रकार से गणिम शब्द को कर्म और करण साधन में व्युत्पत्ति संभव होने पर भी सूत्र में गणिम शब्द मुख्य रूप से कर्मसाधन में ग्रहण किया है और गणनीय वस्तुएं जिनके द्वारा गिनी जाती है, उसके लिये एक, दस, सौ, हजार, दस हजार, लाख, दस लाख, करोड़ आदि संख्या का सकेत किया है। सूत्र में गणना के लिये जिन क्रम से संख्याओं का उल्लेख किया है, वे सब पूर्व-पूर्व से दस गुनी हैं। इससे यह ज्ञान हो जाता है कि विश्व में आज तो दसमलवप्रणाली प्रचलित है, उसका प्रयोग भारत में प्राचीन समय से होता चला पा रहा था / प्राचीन भारत इस प्रणाली का प्रस्तावक रहा और आर्थिक क्षेत्र की उपलब्दियों का मानदंड यही प्रणाली थी। यहाँ गणना के लिये करोड़ पर्यन्त की संख्या का संकेत किया है / इससे आगे की संख्याओं के नाम इस प्रकार है- दस करोड़, अग्य, दस अरव, खरब, दस खरब, नील, दस नील, शंख, दस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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