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________________ (1) कुलकर गण्डिकानुयोग-विमलवाहन आदि कुलकरों की जीवनियाँ / (2) तीर्थंकर गण्डिकानुयोग-तीर्थकर प्रभु की जीवनियाँ / (3) गणधर गण्डिकानुयोग----णधरों की जीवनियाँ। (4) चक्रवर्ती गण्डिकानुयोग-भरतादि चक्रवर्ती राजायों की जीवनियाँ। (5) दशाह गण्डिकानुयोग- समुद्र विजय प्रादि दशा) की जीवनियाँ। (6) बलदेव गण्डिकानयोग राम आदि बलदेवों की जीवनियाँ। (7) वासुदेव गण्डिकानुयोग-कृष्ण प्रादि वासुदेवों की जीवनियाँ। (4) हरिवंश गण्डिकानुयोगहरिवंश में उत्पन्न महापुरुषों की जीवनियाँ / (9) भद्रबाहु गण्डिकानुयोग---भद्रबाहु स्वामी की जीवनी। (10) तपःकर्म गण्डिकानुयोग- तपस्या के विविध रूपों का वर्णन / / (11) चित्रान्तर गण्डिकानुयोग-भगवान ऋषभ तथा अजित के अन्तर समय में उनके वंश के सिद्ध या सर्वार्थ सिद्ध में गये हैं, उनका वर्णन / {12) उत्सपिणी गण्डिकानुयोग-उत्सपिणी काल का विस्तृत वर्णन। (13) अवतपिणी गण्डिकानुयोग–अवसपिणी काल का विस्तृत वर्णन। देव, मानब, तियंच, और नरक गति में गमन करना, विविध प्रकार से पर्यटन करना आदि का अनुयोग 'गण्डिकानुयोग' में है। जैसे-वैदिकपरम्परा में विशिष्ट व्यक्तियों का वर्णन पुराण साहित्य में हुआ है, वैसे ही जैनपरम्परा में महापुरुषों का वर्णन गण्डिकानुयोग में हुआ है। गण्डिकानुयोग की रचना समय-समय पर मूर्धन्य मनीषी तथा प्राचार्यों ने की। पंचकल्पणि२३ के अनुसार कालकाचार्य ने गण्डिकाएँ रची थीं, पर उन गण्डिकाओं को संघ ने स्वीकार नहीं किया / आआर्य ने संघ से निवेदन किया- मेरी गण्डिकाएँ क्यों स्वीकृत नहीं की गई हैं ? उन गण्डिकायों में रही हुई त्रुटियां बतायी जायें, जिससे उनका परिष्कार किया जा सके। संघ के बहुश्रुत प्राचार्यों ने उन गण्डिकानों का गहराई से अध्ययन किया और उन्होंने उन पर प्रामाणिकता को मुद्रा लगा दी। इससे यह स्पष्ट है-कालकाचार्य जैसे प्रकृष्ट प्रतिभासम्पन्न प्राचार्य की गण्डिकाएँ भी संघ द्वारा स्वीकृत होने पर ही मान्य की जाती थीं / इससे गण्डिकाओं की प्रामाणिकता सिद्ध होती है / अनुयोग का अर्थ व्याख्या है / व्याख्येय वस्तु के आधार पर अनुयोग के चार विभाग किये गये हैं-चरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग, और द्रव्यानुयोग / 24 दिगम्बरपरम्परा के ग्रन्थ द्रव्यसंग्रह की टीका'५ में, पंचास्तिकाय में, तत्त्वार्थवृत्ति में, इन अनुयोगों के नाम इस प्रकार मिलते हैं प्रथमानुयोग, 23. पञ्चकल्पचूणि। -कालकाचार्य प्रकरण, पृ. 23-24 24. चत्तारिउ अणुप्रोगा, चरणे धम्म गणियाणुप्रोगे य / दचियाऽणुप्रोगे य तहा, जहकम्मं ते महड्ढीया / / -अभिधान राजेन्द्रकोष, प्र. भाग, पृ. 256 25. प्रथमानुयोगो....चरणानुयोगो....करणानुयोगो....द्रव्यानुयोगो इत्युक्तलक्षणानुयोगचतुष्टयरूपे चतुर्विधं श्रुतज्ञानं ज्ञातव्यम् / -द्रव्यसंग्रह टीका, 421182 26. पंचास्तिकाय, 173 27. तत्वार्थवृत्ति, 254 / 15 [25] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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