________________ नामाधिकार निरूपण [219 माता और पिता-मातापिता, पुण्य और पाप-पुण्यपाप इत्यादि शब्द हिन्दी भाषा संबन्धी द्वन्द्वसमास के उदाहरण हैं। बहुव्रीहिसमास 266. से कि तं बहुब्बीहीसमासे ? बहुन्बोहिसमासे फुल्ला जम्मि गिरिम्मि कुडय-कलंबा सो इमो गिरी फुल्लियकुडय-कलंबो। से तं बहुब्बीहीसमासे। [296 प्र.] भगवन् ! बहुब्रीहिसमास किसे कहते हैं ? [296 उ.] प्रायुध्मन् ! बहुव्रीहिसमास का लक्षण यह है-इस पर्वत पर पुष्पित (प्रफुल्लित) कुटज और कदंब वृक्ष होने से यह पर्वत फुल्लकुटजकदंब है। यहाँ 'फुल्लकुटजकदंब' पद बहुब्रीहिसमास है। विवेचन बहुव्रीहिसमास--समासगत पद जब अपने से भिन्न किसी अन्य पदार्थ का बोध कराये अर्थात् जिस समास में अन्यपद प्रधान हो, उसे बहुब्रीहिसमास कहते हैं। बहुव्रीहिसमास में शब्द के दोनों ही पद गौण होते हैं / जो सूत्रोक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि कुटज और कदंब शब्द प्रधान नहीं हैं, किन्तु इनसे युक्त पर्वत रूप अन्य पद प्रधान है। बहुब्रीहिसमास में अन्तिम पद में विभक्ति का लोप नहीं भी होता है। विभक्ति का लोप प्रथम पद में और यदि दो से अधिक पदों का समास हो तो अन्तिम पद के अतिरिक्त अन्य पदों में होता है। कर्मधारय समास 267. से कि तं कम्मधारयसमास ? कम्मधारयसमासे धवलो बसहो धवलवसहो, किण्हो मिगो किण्हमिगो, सेतो पटो सेतपटो, रत्तो पटो रत्तपटो। से तं कम्मधारयसमासे / [297 प्र.] भगवन् ! कर्मधारयसमास का क्या स्वरूप है ? [297 उ.] आयुष्मन् ! 'धवलो वृषभः धवलवृषभः', 'कृष्णो मृगः कृष्णमृग', 'श्वेतः पटः श्वेतपट:' 'रक्तः पट: रक्तपट:' यह कर्मधारयसमास है। विवेचन--सूत्र में उदाहरणों द्वारा कर्मधारयसमास की व्याख्या की है। जिसका प्राशय यह है जिसमें उपमान-उपमेय, विशेषण-विशेष्य का सम्बन्ध होता है वह कर्मधारयसमास है अथवा समान अधिकरण वाला तत्पुरुषसमास ही कर्मधारयसमास कहलाता है। यदि विशेषण प्रथम हो तो विशेषणपूर्वपदकर्मधारय, उपमान प्रथम हो तो उपमानपूर्वपदकर्मधारय, उपमान बाद में हो तो उपमानोत्तरपदकर्मधारय कहलाता है। सूत्र में जितने भी उदाहरण दिये हैं वे सब विशेषणपूर्वपदकर्मधारय के हैं / उपमानपूर्वपद के उदाहरण 'घन इव.श्याम:धनश्याम:' और उपमानोत्तर के उदाहरण पुरुषसिंहः जैसे शब्द जानना चाहिये / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org