________________ 214] [अनुयोगद्वारसूत्र ज्योतिषशास्त्र के अनुसार तो नक्षत्रों के नामों का क्रम अश्विनी, भरणी आदि रूप है, लेकिन अभिजित् नक्षत्र के साथ पढ़े जाने पर सूत्रोक्त कृत्तिका, रोहिणी आदि क्रमविन्यास ही देखा जाता है। नक्षत्रनाम की व्याख्या तो उक्त प्रकार है, किन्तु ये कृत्तिका आदि प्रत्येक नक्षत्र अग्नि आदि एक-एक देवता द्वारा अधिष्ठित हैं / इसलिये कभी-कभी नक्षत्र के अधिष्ठायक देवों के नाम पर भी व्यक्ति का नाम रख लिया जाता है / अत: अब देवताम का वर्णन करते हैं। देवनाम 286. से किं तं देवयणामे ? देवयणामे अग्गिदेवयाहि जाते अग्गिए अग्गिदिपणे अग्गिधम्मे अग्गिसम्मे अस्गिदेवे अग्गिदासे अग्गिलेणे अगिरक्खिए / एवं पि सम्वनक्खत्तदेवतनामा भाणियव्वा / एत्थं पि य संगहणिगाहाओ, तं जहा--- अग्गि 1 पयावइ 2 सोमे 3 रहे 4 अदिती 5 वहस्सई 6 सप्पे 7 / पिति 8 भग 9 अज्जम 10 सविया 11 तट्ठा 12 वायू 13 य इंदग्गी 14 // 6 // मित्तो 15 इंदो 16 णिरिती 17 आऊ 18 विस्सो 19 य बंभ 20 विण्हू य 21 / वसु 20 वरुण 23 अय 24 विवद्धी 25 से 26 आसे 27 जमे 28 चेव / / 90 // से तं देवयणामे। [286 प्र.] भगवन् ! देवनाम का क्या स्वरूप है ? 286 उ.] आयुष्मन् ! देवनाम का यह स्वरूप है। यथा--अग्नि देवता से अधिष्ठित नक्षत्र में उत्पन्न हुए (बालक) का याग्निक, अग्निदत्त, अग्निधर्म, अग्निशम, अग्निदास, अग्निसेन, अग्निरक्षित प्रादि नाम रखना। इसी प्रकार से अन्य सभी नक्षत्र-देवताओं के नाम पर स्थापित नामों के लिये भी जानना चाहिये / देवताओं के नामों को भी संग्राहक गाथायें हैं, यथा-- 1. अग्नि, 2. प्रजापति, 3. सोम, 4. रुद्र, 5. अदिति, 6. बृहस्पति, 7. सर्प, 8. पिता, 9. भग, 10. अर्यमा, 11. सविता, 12. त्वष्टा, 13. वायु, 14. इन्द्राग्नि, 15. मित्र, 16. इन्द्र, 17. निऋति, 18. अम्भ, 19. विश्व, 20. ब्रह्मा, 21. विष्णु, 22. वसु, 23. वरुण, 24. अज, 25. विवद्धि 26. पूषा, 27. अश्व और 28. यम, यह अट्ठाईस देवताओं के नाम जानना चाहिये / 89, 90 यह देवनाम का स्वरूप है। विवेचन-सूत्र में देवनाम का स्वरूप बताया है। जैसे अग्निदेवता से अधिष्ठित कृत्तिका नक्षत्र में उत्पन्न हुए व्यक्ति के नामस्थापन में नक्षत्र को गौण मानकर देवनाम की मुख्यता से अग्निदत्त, अग्निसेन आदि नाम रखे जाते हैं, उसी प्रकार प्राजापतिक आदि नामों के लिये प्रजापति आदि देवनामों की मुख्यता समझ लेना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org