________________ नामाधिकार निरूपण [197 अतएव इससे अधिक और दूसरी घणित वस्तु क्या हो सकती है ? निर्वेद और अविहिंसा बीभत्सरस के लक्षण बताये हैं। निर्वेद अर्थात् उद्वेग, मन में ग्लानिभाव, संकल्प-विकल्प उत्पन्न होना। शरीर आदि की असारता को जानकर हिंसादि पापों का त्याग करना अविहिंसा है। इन दोनों को उदाहरण में घटित किया है कि यह शरीर यथार्थ में उद्वेगकारी होने से भाग्यशाली जन उसके ममत्व को त्याग कर, हिंसादि पापों से विरत होकर आत्मरमणता की ओर अग्रसर होते हैं। हास्यरस [] रूव - वय - वेस-भासाविवरीयविलंबणासमुप्पन्नो। हासो मणप्पहासो पकालिगो रसो होति // 76 // हासो रसो जहा पासुत्तमसीमंडियपडिबुद्धं देयरं पलोयंती। ही! जह थणभरकंपणपणमियमज्झा हसति सामा // 77 // 262-8] रूप, वय, वेष और भाषा को विपरीतता से हास्य रस उत्पन्न होता है। हास्यरस मन को हर्षित करने वाला है और प्रकाश–मुख, नेत्र आदि का विकसित होना, अट्टहास आदि उसके लक्षण हैं / 76 हास्य रस इस प्रकार जाना जाता है----- प्रात: सोकर उठे, कालिमा से काजल की रेखाओं से मंडित देवर के मुख को देखकर स्तनयुगल के भार से नमित मध्यभाग वाली कोई युवती (भाभी) ही-ही करती हंसती है / 77 विवेचन-यहाँ हास्यरस का स्वरूप बताया है। हास्य रस रूप, वय, वेश और भाषा की विपरीतता रूप विडंबना से उत्पन्न होता है। पुरुष द्वारा स्त्री का या स्त्री द्वारा पुरुष का रूप धारण करना रूप की विपरीतता है। इसी प्रकार वय आदि की विपरीतता-विडम्बना के विषय में जान लेना चाहिये / जैसे कोई तरुण वृद्ध का रूप बनाए, राजपुत्र वणिक् का रूप धारण करे, आदि / इस प्रकार की विपरीतताओं से हास्यरस की उत्पत्ति होती है / हँसते समय मुख का खिल जाना, खिल-खिलाना आदि हास्यरस के चिह्नों को तो सभी जानते हैं। करुणरस [6] पियविप्पयोग-बंध-वह-वाहि-विणिवाय-संभमुष्पन्नो। सोचिय-विलविय-पव्वाय-हलिगो रसो कलुणो॥७८ // कलुणो रसो जहा-. पज्झातकिलामिययं बाहागयपप्पुयच्छियं बहुसो / तस्स वियोगे पुत्तिय ! दुब्बलयं ते मुहं जायं // 79 // [262-9] प्रिय के वियोग, बंध, बध, व्याधि, विनिपात, पुत्रादि-मरण एवं संभ्रम-परचक्रादि के भय प्रादि से करुण रस उत्पन्न होता है / शोक, विलाप, अतिशय म्लानता, रुदन आदि करुणरस के लक्षण हैं। 78 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org