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________________ अनुयोगद्वार : एक समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तावना अध्यात्म और विज्ञान अतीत काल से ही मानवजीवन के साथ अध्यात्म और विज्ञान का अत्यन्त गहरा सम्बन्ध रहा है / ये दोनों सत्य के अन्तस्तल को समुद्घाटित करने वाली दिव्य और भव्य दृष्टियाँ हैं। अध्यात्म आत्मा का विज्ञान है / वह आत्मा के शुद्ध और अशुद्ध स्वरूप का, बंध और मोक्ष का, शुभ और अशुभ परिणितियों का, ह्रास और विकास का गम्भीर गहन विश्लेषण है तो विज्ञान भौतिक प्रकृति की गरु गम्भीर ग्रन्थियों को सुलझाने का महत्त्वपूर्ण साधन है। उसने मानव के तन, मन और इन्द्रियों के संरक्षण व संपोषण के लिए विविध आयाम उपस्थित किए है। जीवन की अखण्ड सता के साथ दोनों का मधुर सम्बन्ध है। अध्यात्म जीवन की अन्तरंग धारा का प्रतिनिधित्व करता है तो विज्ञान बहिरंग धारा का नेतृत्व करता है। अध्यात्म का विषय है जीवन के अन्तःकरण, अन्तश्चैतन्य एवं प्रात्मतत्त्व का विवेचन व विश्लेषण करना। आत्मा के विशोधन व ऊर्वीकरण करने की प्रक्रिया प्रस्तुत करना / जीव और जगत, पारमा और परमात्मा, व्यक्ति और समाज प्रभृति के शाश्वत तथ्यपरक सत्य का दिग्दर्शन करना / जब कि विज्ञान का क्षेत्र है प्रकृति के अणु से लेकर ब्रह्माण्ड तक का प्रयोगात्मक अनुसन्धान करना। अध्यात्म योग है तो विज्ञान प्रयोग है। अध्यात्म मन, वचन और काया की प्रशस्त शक्तियों को केन्द्रित कर मानव-चेतना को विकसित करने वाली निर्भय और निर्द्वन्द्व बनाने की दिव्य व भव्य दृष्टि प्रदान करता है। वह विवेक के तृतीय नेत्र को उद्घाटित कर काम और विकारों को भस्म करता है। जब कि विज्ञान नित्य नई भौतिक सुख-सुविधाओं को समुपलब्ध कराने में अपूर्व देता है। विज्ञान के फलस्वरूप ही मानव अनन्त आकाश में पक्षियों की भाँति उड़ान भरने लगा है, मछलियों की भांति अनन्त सागर की गहराई में जाने लगा है और पृथ्वी पर द्रुतगामी साधनों से गमन करने लगा है। विद्युत् के दिव्य चमत्कारों से कौन चमत्कृत नहीं है ! अध्यात्म अन्तर्मुख है तो विज्ञान बहिर्मख है। अध्यात्म अन्तरंग जीवन को सजाता है, संवारता है, तो विज्ञान बहिरंग जीवन को विकसित करता है। बहिरंग जीवन में किसी भी प्रकार की विखलता नहीं पाये, द्वन्द्व समुत्पन्न न हों, इसलिए अन्तरंग दृष्टि की आवश्यकता है एवं अन्तरंग जीवन को समाधियुक्त बनाने के लिए बहिरंग का सहयोग भी अपेक्षित है। बिना बहिरंग सहयोग के अन्तरंग जीवन विकसित नहीं हो सकता / मूलतः अध्यात्म और विज्ञान परस्पर विरोधी नहीं हैं। उनमें किसी प्रकार का विरोध और द्वन्द्व नहीं है। वे एक-दूसरे के पूरक हैं, जीवन की अखण्डता के लिए दोनों की अनिवार्य आवश्यकता है। [21] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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