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________________ 176] [अनुयोगद्वारसूत्र 256] चार भावों के संयोग से निष्पन्न सान्निपातिकभाव के पांच भंगों के नाम इस प्रकार हैं-१ प्रौदयिक-प्रौपशमिक क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्नभाब, 2 प्रौदयिक-औपशमिक-क्षायिकपारिणामिकनिष्पन्नभाव, 3 प्रौदयिक-ग्रौपयमिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव, 4 प्रौदयिकक्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव, 5 औपश मिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव। 257. कतरे से णामे उदइए उवसमिए खइए खग्रोवसमनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणसे उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खोवसमियाई इंदियाई, एस णं से णामे उदइए उपसमिए खइए खमोवसमनिष्पन्ने 1 / [257-1 प्र.] भगवन् ! औदयिक-ौपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्न सानिपातिकभाव का क्या स्वरूप है ? 257-1 उ.] अायुष्मन् ! औदयिकभाव में मनुष्य, प्रौपशमिकभाव में उपशांतकषाय, क्षायिकभाव में क्षायिकसम्यक्त्व और क्षायोपमिकभाव में इन्द्रियां, यह प्रौदयिक-ौपशमिकक्षायिक-क्षायोपशमिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है / 1 कतरे से नामे उदइए उवसमिए खइए पारिणामियनिष्यन्ने ? उदए ति मणूसे उपसंता कसाया खइयं सम्मत्तं पारिणामिए जीवे, एस जं से गामे उदइए उपसमिए खइए पारिणामियनिप्यन्ने 2 / [257-2 प्र.] भगवन् ! प्रौदयिक-ौपशमिक-क्षायिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सानिपातिकभाव का क्या स्वरूप है ? [257-2 उ.] आयुष्मन् ! औदयिकभाव में मनुष्यगति, औपशामिकभाव में उपशांतकषाय, क्षायिकभाव में क्षायिकसम्यक्त्व और पारिणामिकभाव में जीवत्व, यह औदयिक-ग्रौपशमिक-क्षायिकपारिणामिकभावनिप्पन्न सानिपातिकभाव का स्वरूप है / 2 कतरे से गामे उदइए उवसमिए खोवसमिए पारिणामियनिष्पन्ने ? उदए त्ति मणसे उवसंता कसाया खग्रोवसमियाइं इंदियाई पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उदइए उपसमिए खग्रोवसमिए पारिणामियनिष्पन्ने 3 / [257-3 प्र.] भगवन् ! औदायिक-प्रौपशमिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का क्या स्वरूप है ? [257-3 उ.] अायुरुमन् ! प्रौदयिकभाव में मनुष्यगति, प्रौपशमिकभाव में उपशांतकपाय, क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियां और पारिणामिकभाव में जीवत्व, इस प्रकार से औदयिक-औमिकक्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव के तृतीय भंग का स्वरूप जानना चाहिये / 3 __ कतरे से णामे उदइए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उदए ति मण से खइयं सम्मत्तं खओवसमियाइं इंदियाई पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उदइए खइए खोवसमिए पारिणामियनिष्पन्ने 4 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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