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________________ 132] [अनुयोगद्वारसूत्र [4] से कि तं अणाणुपुन्यो ? अणाणुपुम्वी एयाए व एगादियाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नभाओ दुरूवूणे / से तं अणाणुपुब्वी / से तं संठाणाणुपुत्वी / [205-4 प्र.] भगवन् ! अनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [205-4 प्र.] अायुप्मन् ! एक से लेकर छह तक को एकोत्तर वृद्धि वाली श्रेणी में स्थापित संख्या का परस्पर गुणाकार करने पर निष्पन्न राशि में से प्रादि और ग्रन्न रूप दो भगों को कम करने पर शेष भंग अनानुपूर्वी हैं / इस प्रकार से संस्थानानुपूर्वी का स्वरूप जानना चाहिए। विवेचन--सूत्र में संस्थानानुपूर्वी का स्वरूप बतलाया है / संस्थान, आकार और प्राकृति, ये समानार्थक शब्द हैं / इन संस्थानों की परिपाटी संस्थानानुपूर्वी कहलाती है। यद्यपि ये संस्थान जीव और अजीव सम्बन्धी होने से दो प्रकार के हैं, तथापि यहाँ जीव से संबद्ध और उसमें भी पंचेन्द्रिय जीव संबन्धी ग्रहण किये गये हैं। ये संस्थान समचतुरस्र प्रादि के भेद से छह प्रकार के हैं। इनके लक्षण क्रमश इस प्रकार हैं 1. समचतुरस्रसंस्थान-..'समा चतस्रोऽस्त्रयो यत्र तत् समचतुरस्रम्' यह इसकी व्युत्पत्ति है। तात्पर्य यह हुअा कि जिस संस्थान में नाभि से ऊपर के और नीचे के समस्त अवयव सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार अपने-अपने प्रमाण से युक्त हों हीनाधिक न हों, वह समचतुरस्रसंस्थान है। इस संस्थान में शरीर के नाभि से ऊपर और नीचे के सभी अंग-प्रत्यंग प्रमाणोपेत होते हैं / आरोह-परिणाह (उतारचढ़ाव) अनुरूप होता है। इस संस्थान वाला शरीर अपने अंगुल से एक सौ पाठ अंगुल ऊंचाई वाला होता है, यह संस्थान सर्वोत्तम होता है / समस्त संस्थानों में मुख्य, शुभ होने से इस संस्थान का प्रथम उपन्यास किया है। 2. न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान-न्यग्रोध के समान विशिष्ट प्रकार के शरीराकार को न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान कहते हैं / न्यग्रोध वटवृक्ष का नाम है / इसके समान जिसका मंडल (आकार)हो अर्थात् जैसे न्यग्रोध-वटवृक्ष ऊपर में संपूर्ण अवयवों वाला होता है और नीचे बैसा नहीं होता। इसी प्रकार यह संस्थान भी नाभि से ऊपर विस्तार वाला और नाभि से नीचे हीन प्रमाण वाला होता है। इस प्रकार का संस्थान न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान कहलाता है। 3. सादिसंस्थान----'पादिना सह यद् वर्तते तत् सादि / ' अर्थात् नाभि से नीचे का उत्सेध नाम का देहभाग यहाँ यादि शब्द से ग्रहण किया गया है / अतएव नाभि से नीचे का भाग जिस संस्थान में विस्तार वाला और नाभि से ऊपर का भाग हीन होता है, वह संस्थान सादि है / यद्यपि समस्त शरीर आदि सहित होते हैं, तो भी यहाँ सादि विशेषण यह बतलाने के लिए प्रयुक्त किया है इस सस्थान में नाभि के नीचे के अवयव आद्य संस्थान जैसे होते हैं, नाभि से ऊपर के अवयव वैसे नहीं होते। 4. कुब्ज संस्थान--जिस संस्थान में सिर, ग्रीवा, हाथ, पैर तो उचित प्रमाण वाले हों, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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