SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आन यूरू निरूपण! |125 (8,9) भाव और अल्पबहत्व द्वार 198. भावो वि तहेव / अप्पाबहुं पि तहेव नेयन्वं जाव से तं अणुगमे / से तं गम-ववहाराणं अणीवणिहिया कालाणुपुवी। [198] भावद्वार और अल्पवहुत्व का भी कथन क्षेत्रानुपूर्वी जैसा ही समझना चाहिये यावत् अनुगम का यह स्वरूप है। इस प्रकार नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्ती का वर्णन पूर्ण हुमा / विवेचन---सूत्र में क्षेत्रानुपूर्वी की भाव और अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की तरह कालानुपूर्वी के भी इन दोनों द्वारों का कथन करने का उल्लेख करते हुए अनु गम और नैगम-व्यवहार नयसम्मत अनौपनिधिकी कालानु पूर्वी के वर्णन की समाप्ति की सूचना दी गई है / भाव और अल्पबहत्व प्ररूपणा का सारांश इस प्रकार हैआनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्यक ये तीनों द्रव्य सादि पारिणामिक भाव वाले हैं। इनका अल्पवहुत्व इस प्रकार जानना चाहिये-समस्त प्रवक्तव्यद्रव्य स्वभाव से ही कम होने से शेष दो द्रव्यों की अपेक्षा अल्प हैं / अनानुपूर्वीद्रव्य अबक्तव्यकद्रव्यों की अपेक्षा विशेषाधिक तथा अानुपूर्वीद्रव्य इन दोनों द्रव्यों की अपेक्षा असंख्यातगुण अधिक हैं / यह असंख्यातगुणाधिकता पूर्वोक्त भागद्वार की तरह यहाँ जानना चाहिये। ___ इस प्रकार नैगम-व्यवहारनयसंमत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी का वर्णन करने के पश्चात् अव मंग्रहनयमान्य अनोपनिधिको कालानुपूर्वी का विचार किया जाता है। संग्रहनयमान्य अनौपनिधिको कालान पूर्वी / 199. से कि तं संगहस्स अणोवणिहिया कालाणपुवी ? संगहस्स प्रणोवििहया कालाणुपुवी पंचविहा पण्णत्ता। तं जहा—अटुपयपरूवणया 1 भंगसमुक्कित्तणया 2 भंगोवदसणया 3 समोतारे 4 अणुगमे 5 / [199 प्र.] भगवन ! संग्रहनयसंमत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [199 उ.] आयुष्मन् ! संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी पांच प्रकार की है / वे प्रकार हैं- 1. अर्थपदप्ररूपणना, 2. भंगसमुत्कीर्तनता, 3. भंगोपदर्शनता, 4. समवतार और 5. अनुगम / विवेचन--अर्थपदप्ररूपणता आदि के लक्षण पूर्व में कहे जा चुके हैं। आगे उनके प्राशय का निर्देश करते हैं। संग्रहनयसंमत अर्थपदप्ररूपणता आदि 200. से कि तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया ? संगहस्स अट्ठपयपरूवणया एयाई पंच वि दाराई जहा खेत्ताणपुब्बीए संगहस्स तहा कालाणुपुवीए विभाणियवाणि, गवरं ठितीअभिलावो जाव से तं संगहस्स अणोवणिहिया कालाणुपुवी / से तं प्रणोवणिहिया कालाणुपुग्वी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy