________________ आनुपूर्वी निरूपण [109 धूमप्रभा, तमःप्रभा और तमस्तम:प्रभा पृथ्वियों में क्रमश: धूम-धंधा, अंधकार और गाढ़ अंधकार जैसी प्रभा है। इसी कारण सातों नरकपृथ्वियां सार्थक नाम वाली हैं। अनानुपूर्वी में एक आदि सात पर्यन्त सात अंकों का परस्पर गुणा करने पर 5040 भंग होते हैं। इनमें से आदि का भंग पूर्वानुपूर्वी और अंतिम भंग पश्चानुपूर्वी रूप होने से इन दो को छोड़कर शेष 5038 भंग अनानुपूर्वी के हैं। तिर्यग (मध्य) लोकक्षेत्रानपर्वो 168. तिरियलोयखेत्ताणुपुत्वी तिविहा पण्णता / तं जहा-पुन्वाणुपुव्वी 1 पच्छाणुपुब्वी 2 अणाणुपुव्वी 3 / [16] तिर्यग् (मध्य) लोकक्षेत्रानुपूर्वी के तीन भेद कहे गये हैं। वे इस प्रकार१. पूर्वानृपूर्वी, 2. पश्चानुपूर्वी, 3. अनानुपूर्वी / 169. से कि तं पुग्वाणुपुची? पुव्वाणुपुन्वी जंबुद्दीवे लवणे धायइ-कालोय-पुक्खरे वरुणे। खीर-घय-खोय-नंदी-अरुणवरे कुडले रुयगे / / 11 // जंबुद्दीवाओ खलु निरंतरा, सेसया असंखइमा। भुयगवर-कुसवरा वि य कोंचवराभरणमाईया // 12 // आभरण-वत्थ-गधे उप्पल-तिलये य पउम-निहि-रयणे / वासहर-दह-गदीओ विजया वक्खार-कप्पिदा / / 13 // कुरु-मंदर-आवासा कडा नक्खत्त-चंद सूरा य / देवे नागे जवखे भूये य सयंभुरमणे य // 14 // से तं पुवाणुयुयी। [169. प्र. भगवन् ! मध्यलोकक्षेत्रपूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [169. उ.] आयुष्मन् ! मध्यलोकक्षेत्रपूर्वानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार है जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखंडद्वीप, कालोदधिसमुद्र, पुष्करद्वीप, (पुष्करोद) समुद्र, वरुणद्वीप, वरुणोदसमुद्र, क्षीरद्वीप, क्षीरोदसमुद्र, घृतद्वीप, धृतोदसमुद्र, इक्षुवरद्वीप, इक्षुवरसमुद्र, नन्दीद्वीप, नन्दीसमुद्र, अरुणवरद्वीप, अरुणवरसमुद्र, कुण्डलद्वीप, कुण्डलसमुद्र, रुचकद्वीप, रुचकसमुद्र / 11 / जम्बूद्वीप से लेकर ये सभी द्वीप-समुद्र बिना किसी अन्तर के एक दूसरे को घेरे हुए स्थित हैं / इनके आगे असंख्यात-असंख्यात द्वीप-समुद्रों के अनन्तर भुजगवर तथा इसके अनन्तर असंख्यात द्वीप-समुद्रों के पश्चात् कुशवरद्वीप समुद्र है और इसके बाद भी असंख्यात द्वीप-समुद्रों के पश्चात् कौंचवर द्वीप है / पुनः असंखपात द्वीप-समुद्रों के पश्चात प्राभरणों आदि के सदश शुभ नाम वाले द्वीपसमुद्र हैं / 12 / यथा---- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org