________________ 58] (अनुयोगद्वारसूत्र द्रव्यानपूर्वी 95. दवाणुपुरवी जाव से कि तं जाणगसरीरभवियसरीरवईरित्ता दव्वाणुपुवी ? जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ता दब्वाणुपुब्बी दुविहा पणत्ता / तं जहा–उवणिहिया य 1 अणोणिहिया य 2 / [25] द्रव्यानुपूर्वी का स्वरूप भी ज्ञायकशरीर-भव्यशरीव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी के पहले तक सभेद द्रव्यावश्यक के समान जानना चाहिये। प्र. भगवन् ! ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? उ. आयुष्मन् ! ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रब्यानुपूर्वी दो प्रकार की कही है। यथा--१ प्रोपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी और 2 अनौपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी / 96. तत्थ णं जा सा उवाणिहिया सा ठप्पर। [96] इनमें से औपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी स्थाप्य है / तथा-- 97. तत्थ णं जा सा अणोवणिहिया सा दुविहा पन्नता। तं जहा-णेगम-ववहाराणं 1 संगहस्स य 2 // [97] अनोपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी के दो प्रकार हैं-१ नैगम-व्यवहारनयसंमत, 2 संग्रहह्नयसंमत। विवेचन--सूत्र संख्या 94-95 में नाम, स्थापना आनुपूर्वी तथा द्रव्यानुपूर्वी के कतिपय भेदों का स्वरूप सदृश नाम वाले आवश्यक के भेदों के जैसा समझने का अतिदेश किया है / इसके अतिरिक्त विशेष कथनीय इस प्रकार है औपनिधिको आनुपूर्वी—इसका मूल शब्द उपनिधि है / जिसमें 'उप' का अर्थ है समीप तथा 'निधि' का अर्थ है रखना। अतएव किसी एक विवक्षित पदार्थ को पहले व्यवस्थापित करके फिर उसके पास ही पूर्वानुपूर्वी आदि के क्रम से अन्यान्य पदार्थों को रखे जाने को उपनिधि कहते हैं और यह उपनिधि जिस अानुपूर्वी का प्रयोजन है, उसे प्रोपनिधिकी आनुपूर्वी कहते हैं। अनौप निधिको आनुपूर्वो-अनुपनिधि-पूर्वानुपूर्वी आदि के क्रमानुसार पदार्थ की स्थापना, व्यवस्था नहीं करना अनौपनिधिकी श्रानुपूर्वी कहलाती है / इन दोनों में अल्पविषय वाली होने से प्रोपनिधिकी प्रानुपूर्वी को गौण मानकर पहले बहुविषय वाली अनौपनिधिकी प्रानुपूर्वी का वर्णन प्रारंभ किया है। प्रोपनिधिकी प्रानुपूर्वी का कथन आगे किया जाएगा। अनौपनिधिको आनुपूर्वी की द्विविधता-गम, संग्रह, व्यवहार आदि सात नयों का द्रव्याथिक और पर्यायाथिक इन दो नयों में अन्तर्भाव हो जाता है। द्रव्याथिकनय द्रव्य ही परमार्थ है, इस प्रकार पर्यायों को गौण करके द्रव्य को स्वीकार करता है और पर्यायाथिकनय की दृष्टि से पर्यायें ही मुख्य हैं सत् हैं / नैगम, संग्रह और व्यवहार ये तीन नय द्रव्य को ही विषय करने वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org