________________ ज्ञान के पांच प्रकार] [65 संज्ञक हैं। इनमें ह्रास-विकास, एवं न्यूनाधिकता होती है। किन्तु केवलज्ञान और केवलदर्शन में ह्रास-विकास या न्यून-पाधिक्य नहीं होता। वे प्रकट होने पर कभी अस्त नहीं होते। छाद्मस्थिक उपयोग क्रमभावी हैं, अर्थात् एक समय में एक ही उपयोग हो सकता है, एक से अधिक नहीं / इस विषय में सभी प्राचार्य एकमत हैं. किन्तु केवली के उपयोग के विषय में तीन धारणाएं हैं / यथा (1) निरावरणज्ञान-दर्शन होते हुए भी केवली में एक समय में एक ही उपयोग होता है / जब ज्ञान-उपयोग होता है तब दर्शन-उपयोग नहीं होता और जब दर्शन-उपयोग होता है तब ज्ञानउपयोग नहीं हो सकता / इस मान्यता को क्रम-भावो तथा एकान्तर-उपयोगवाद भी कहते हैं / इसके समर्थक जिनभद्र-गणी क्षमाश्रमण आदि हैं। (2) केवलज्ञान और केवलदर्शन के विषय में दूसरा मत युगपद्वादियों का है। उनका कथन है:-जैसे सूर्य और उसका ताप युगपत् होते हैं, वैसे ही निरावरण ज्ञान-दर्शन भी एक साथ प्रकाश करते हैं अर्थात् अपने-अपने विषय को ग्रहण करते रहते हैं, क्रमश: नहीं। इस मान्यता के समर्थक आचार्य सिद्धसेन दिवाकर आदि हैं जो अपने समय के अद्वितीय तार्किक विद्वान् थे। (3) तीसरी मान्यता अभेदवादियों की है। उनका कथन है कि केवलज्ञान और केवलदर्शन दोनों एकरूप हो जाते हैं / जब ज्ञान से सब कुछ जान लिया जाता है तब पृथक् दर्शन की क्या आवश्यकता है ? दूसरे, ज्ञान प्रमाण माना गया है, दर्शन नहीं, अतः वह अप्रधान है। इस मान्यता के समर्थक प्राचार्य वृद्धवादी आदि हुए हैं। युगपत्-उपयोगवाद यहाँ पर एकान्तर-उपयोगवादियों की मान्यता का खंडन करते हुए युगपद्वादियों ने विभिन्न प्रमाणों द्वारा अपने मत की पुष्टि की है। युगपद्वादियों का मत है कि केवलज्ञान और केवलदर्शन दोनों उपयोग सादि-अनन्त हैं. इसलिए केवली एक साथ पदार्थों को जानता भी है और देखता भी है। कहा भी है: जं केवलाई सादी, अपज्जवसिताइं दोऽवि भणिताई। तो बैंति केइ जुगवं, जाणइ पासइय सव्वण्णू / / (1) उनकी मान्यता है कि एकान्तर उपयोग पक्ष में सादि-अनन्तता घटित नहीं होती, क्योंकि जब ज्ञान का उपयोग होता है तब दर्शन का नहीं रहता और जब दर्शनोपयोग होता है तब ज्ञानोपयोग नहीं रहता / इससे उक्त ज्ञान, दर्शन सादि-सान्त सिद्ध होते हैं। (2) एकान्तर-उपयोग में दूसरा दोष मिथ्यावरणक्षय है। केवलज्ञानावरण और दर्शनावरण का पूर्णरूप से क्षय हो जाने पर भी यदि ज्ञान के समय दर्शन का और दर्शन के साथ ज्ञान का उपयोग नहीं रहता तो आवरणों का क्षय मिथ्या-बेकार हो जाएगा / जैसे दो दीपकों को निरावरण कर देने से वे एक साथ प्रकाश करते हैं, इसी प्रकार दोनों उपयोग एक साथ प्रकाश करते हैं क्रमश: नहीं। यही मान्यता निर्दोष है। (3) युगपद्वादो एकान्तर-उपयोग पक्ष में तीसरा दोष इतरेतरावरणता सिद्ध करते हैं / यदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org