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________________ श्रोताओं के विविध प्रकार ५१-सेलघण-कुडग-चालिणी, परिपुण्णग-हंस-महिस-मेसे य। मसग-जलग-विराली, जाहग-गो-मेरि-पाभीरी // 51-(1) शेलघन-चिकना गोल पत्थर और पुष्करावर्त मेघ (2) कुटक-घड़ा (3) चालनी (4) परिपूर्णक, (5) हंस (6) महिष (7) मेष (8) मशक (8) जलौक-जौंक (10) विडालीविल्ली (11) जाहक (चूहे की जाति विशेष) (12) गौ (13) भेरी और (14) आभीरी (भीलनी) इनके समान श्रोताजन होते हैं / विवेचन-शास्त्र का शुभारम्भ करने से पूर्व विघ्न-निवारण हेतु, मंगल-स्वरूप अर्हत् आदि का कीर्तन करने के पश्चात् आगम-ज्ञान को श्रवण करने का अधिकारी कौन होता है ? और किसप्रकार की परिषद् (श्रोतसमूह) श्रवण करने योग्य होती है ? यह स्पष्ट करने के लिए चौदह दृष्टान्तों द्वारा श्रोताओं का वर्णन किया गया है। उत्तम वस्तु पाने का अधिकारी सुयोग्य व्यक्ति ही होता है / जो जितेन्द्रिय हो, उपहास नहीं करता हो, किसी का गुप्त रहस्य प्रकाशित नहीं करता हो, विशुद्ध चारिवान् हो, जो अतिचारी, अनाचारी न हो, क्षमाशील हो, सदाचारी एवं सत्य-प्रिय हो, ऐसे गुणों से युक्त व्यक्ति ही श्रुतज्ञान का लाभ करने का अधिकारी होता है। वही सुपात्र है। इन योग्यतानों में यदि कुछ न्यूनता हो तो वह पात्र है। इन गुणों के विपरीत जो दुष्ट, मूढ एवं हठी है, वह कुपात्र है ! वह श्रुतज्ञान का अधिकारी नहीं हो सकता, क्योंकि वह प्रायः श्रुतज्ञान से दूसरों का ही नहीं अपितु अपना भी अहित करता है। यहाँ सूत्रकार ने श्रोताओं को चौदह उपमाओं द्वारा वर्णित किया है / यथा (1) शैल-घन-यहाँ शैल का अभिप्राय गोल मूग के बराबर चिकना पत्थर है। घन पूष्करावर्त मेघ को कहा गया है। मुदगशैल नामक पत्थर पर सात अहोरात्र पर्यन्त निरन्तर मुसलधार पानी वरसता रहे किन्तु वह पत्थर अन्दर से भीगता नहीं है। इसी प्रकार के श्रोता भी होते हैं, जो तीर्थकर, श्रुतकेवलियों आदि के उपदेशों से भी सन्मार्ग पर नहीं आ सकते, तो भला सामान्य प्राचार्य व मुनियों के उपदेशों का उनपर क्या प्रभाव हो सकता है ! वे गोशालक आजीवक और जमाली के समान दुराग्रही होते हैं / भगवान् महावीर भी उनको सन्मार्गगामो नहीं बना सके / (2) कुडग-संस्कृत में इसे 'कुटक' कहते हैं / कुटक का अर्थ होता है घड़ा / घड़े दो प्रकार के होते हैं, कच्चे और पक्के / अग्नि से जो पकाया नहीं गया है, उस कच्चे घडे में सकता है। इसी प्रकार जो अबोध शिशु हैं, वह श्रुतज्ञान के सर्वथा अयोग्य हैं। ___ पक्के घड़े भी दो प्रकार के होते हैं-नये और पुराने / इनमें नवीन घट श्रेष्ठ है जिसमें डाला हुआ गर्म पानी भी कुछ समय में शीतल हो जाता है, तथा कोई वस्तु जल्दी विकृत नहीं होती / इसी प्रकार लघु वय में दोक्षित मुनि में डाले हुए अच्छे संस्कार सुन्दर परिणाम लाते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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