SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [नन्दीसूत्र पताका, अश्व और नंदीघोष इन तीनों को क्रमशः शील, तप-नियम और स्वाध्याय से उपमित किया है। जैसे रथ सुपथगामी होता है, उसी प्रकार संघ रूपी रथ भी मोक्ष-पथ का गामी है। संघ-पद्म की स्तुति ७-कम्मरय-जलोह-विणिग्गयस्स, सुय-रयण-दीहनालस्स / पंचमहन्वय-थिरकनियस्स, गुण-केसरालस्स // ८-सावग-जण-महुअरि-परिवडस्स, जिणसूरतेयबुद्धस्स / संघ-पउमस्स मद्द, समणगण-सहस्सपत्तस्स / / ७-८--जो संघ रूपी पद्म-कमल, कर्म-रज तथा जल-राशि से ऊपर उठा हुआ है-अलिप्त है, जिसका अाधार श्रुतरत्नमय दीर्घ नाल है, पाँच महाव्रत जिसकी सुदृढ़ कणिकाएँ हैं, उत्तरगुण जिसका पराग है, जो भावुक जन रूपी मधुकरों--भंवरों से घिरा हुआ है, तीर्थंकर रूप सूर्य के केवलज्ञान रूप तेज से विकसित है, श्रमणगण रूप हजार पाँखुड़ी वाले उस संघ-पद्म का सदा कल्याण हो / विवेचन-इन दोनों गाथाओं में श्री संघ को कमल की उपमा से अलंकृत किया गया है / जैसे कमलों से सरोवर को शोभा बढ़ती है, वैसे ही श्रीसंघ से मनुष्यलोक की शोभा बढ़ती है। पद्मवर के दीर्घ नाल होती है, श्रीसंघ भी श्रुत-रत्न रूप दीर्घनाल से युक्त है / पद्मवर की स्थिर कणिका है, श्रीसंघ-पद्म भी पंच-महाव्रत रूप स्थिर कर्णिका वाला है। पद्म सौरभ, पीत पराग तथा मकरन्द के कारण भ्रमर-भ्रमरी-समूह से घिरा होता है, वैसे ही श्रीसंघ मूल गुण रूप सौरभ से, उत्तर गुण रूपी पीत पराग से, आध्यात्मिक रस, एवं धर्म-प्रवचन से, आनन्दरस-रूप मकरन्द से युक्त है और श्रावकगण रूप भ्रमरों से परिवृत रहता है। पनवर सूर्योदय होते ही विकसित हो जाता है, उसी प्रकार श्रीसंघ रूप पद्म भी तीर्थकर-सूर्य के केवलज्ञान रूप तेज से विकसित होता है / पद्म, जल और कर्दम से अलिप्त रहता है तो श्रीसंघ रूप पद्म भी कर्मरज से अलिप्त रहता है / पद्मवर के सहस्रों पत्र होते हैं, इसी प्रकार श्रीसंघ रूप पद्म भी श्रमणगण रूप सहस्रों पत्रों से सुशोभित होता है। इत्यादिक गुणों से युक्त श्रीसंघ रूप पद्म का कल्याण हो / संघचन्द्र की स्तुति --तव-संजम-मय-लंछण ! अकिरिय-राहुमुह दुद्धरिस ! निच्च / जय संघचन्द ! निम्मलसम्मत्त-विसुद्धजोहागा ! // ६-हे तप प्रधान ! संयम रूप मृगचिह्नमय ! प्रक्रियावाद रूप राहु के मुख से सदैव दुर्द्धर्ष ! अतिचार रहित सम्यक्त्व रूप निर्मल चाँदनो से युक्त ! हे संघचन्द्र ! आप सदा जय को प्राप्त करें। विवेचन-प्रस्तुत गाथा में श्रीसंघ को चन्द्रमा की उपमा से अलंकृत किया गया है / जैसे चन्द्रमा मृगचिह्न से अंकित है, सौम्य कान्ति से युक्त तथा गृह, नक्षत्र, तारों से घिरा हुआ होता है, इसी प्रकार श्रीसंघ भो तप, संयम, रूप चिह्न से युक्त है, नास्तिक व मिथ्यादृष्टि रूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy