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________________ प्रस्तुत सम्पादनं :-- नन्दी सूत्र का यह सुन्दर संस्करण ब्यावर से प्रकाशित भागम-ग्रन्थमाला की लाड़ी की एक कडी हैं। अल्प काल में ही वहाँ से एक के बाद एक यों अनेक प्रागम प्रकाशित हो चके हैं। प्राचारांग सूत्र दो भागों में तथा सुत्रकृतांग सूत्र भी दो भागों में प्रकाशित हो चुका है। ज्ञातासूत्र, उपासकदशांगसूत्र अन्तकृदशांगसूत्र, अनुत्तरोपपातिक सूत्र और विषाक सूत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं / नन्दीसूत्र प्राप के समक्ष है / युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी म० 'मधुकर' ने ग्रागमों का अधुनातन बोली में नवसंस्करण करने की जो विशाल योजना अपने हाथों में ली है, वह सचमुच एक भगीरथ कार्य है। यह कार्य जहाँ उनकी दूरदर्शिता, दृढ संकल्प और प्रागमों के प्रति अगाधभक्ति का सबल प्रतीत है, वहाँ साथ ही श्रमण संघ की तथा युवाचार्यश्रीजी को अमर कीति का कारण भी बनेगा। वे मेरे पुराने स्नेही मित्र हैं। उनका स्वभाव मधुर है व समाज को जोड़कर, कार्य करने की उनकी अच्छी क्षमता है उनके ज्ञान, प्रभाव और परिश्रम से सम्पूर्ण आगमों का प्रकाशन संभव हो सका तो समस्त स्थानकवासी जैनसमाज के लिए महान गौरव का विषय सिद्ध होगा। प्रस्तुत संस्करण की अपनी विशेषताएँ हैं—शुद्ध मुल पाठ, भावार्थ और फिर विवेचन / विवेचन न बहुत लम्बा है, और न बहुत संक्षिप्त ही / विवेचन में, नियुक्ति चूणि और संस्कृत टीकाओं का आधार लिया गया है। विषय गम्भीर होने पर भी व्याख्याकार ने उसे सरल एवं सरस बनाने का भरसक प्रयास किया है / विवेचन सरल, सम्पादन सुन्दर और प्रकाशन आकर्षक है। अतः विवेचक, सम्पादक एवं प्रकाशक-तीनों धन्यवाद के पात्र हैं। नन्दीसूत्र का स्वाध्याय केवल साध्वी-साधु ही नहीं करते, श्राविका-श्रावक भी करते हैं। नन्दी के स्वाध्याय से जीवन में प्रानन्द तथा मंगल की अमृत वर्षा होती है। ज्ञान के स्वाध्याय से ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम भी होता है / फिर ज्ञान की अभिवृद्धि होती है। ज्ञान निर्मल होता है। दर्शन विशुद्ध बनता है। चारित्र निर्दोष ही जाता है। तीनों की पूर्णता से निर्वाण का महा लाभ मिलता है। यही है, नन्दीसूत्र के स्वाध्याय की फलश्रुति / यह सूत्र अपने रचनाकाल से ही समाज में अत्यन्त लोकप्रिय रहा है। श्रमण संघ के भावी प्राचार्य पण्डित प्रवर मधुकरजी महाराज की सम्पादकता में एवं संरक्षकता में प्रागम प्रकाशन का जो एक महान कार्य हो रहा है, वह वस्तुतः प्रशंसनीय है। पूज्य अमोलकऋषिजी महाराज यन्त संक्षिप्त थे, और ग्राज वे उपलब्ध भी नहीं होते / पूज्य घासीलालजी महाराज के प्रागम अत्यन्त विस्तत हैं; सामान्य पाठक की पहुंच से परे हैं। श्री मधुकरजी के पागम नतन शैली में, नुतन भाषा में और नूतन परिवेश में प्रकाशित हो रहे हैं / यह एक महान् हर्ष का विषय है / नन्दीसूत्र की व्याख्या एक साध्वी की लेखनी से हो रही है, यह एक और भी महान् प्रमोद का विषय है / साध्वी रत्न, महाविदुषी श्री उमरावकुबरजी 'अर्चना' जी स्थानकवासी समाज में चिरविश्रुता हैं। नन्दीसूत्र का लेखन उनकी कीर्ति को अधिक व्यापक तथा समुज्ज्वल करेगा-इसमें जरा भी सन्देह नहीं / 'अर्चना' जी संस्कृत भाषा एवं प्राकृत भाषा की विदुषी तो हैं ही, लेकिन उन्होंने पागमों का भी गहन अध्ययन किया है, यह तथ्य इस लेखन से सिद्ध हो जाता है। मुझे आशा है, कि अनागत में वे अन्य नागमों की व्याख्या भी प्रस्तुत करेंगी। पण्डित प्रवर शोभाचन्द्रजी भारिल्ल ने इस सम्पादन में पूरा सहयोग दिया है। सव के प्रयास का ही यह एक सुन्दर परिणाम समाज के सामने आया है। [29] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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