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________________ 200] [नन्दीसूत्र हरिवंसगंडियानो, उस्सप्पिणोगडिप्रायो, अोसप्पिणोगडिप्रायो, चित्तंतरगडिप्रायो, अमर-नरतिरिम-निरय-गइ-गमण-विविह–परियट्टणाणप्रोगेसु, एवमाइमामो गंडियाप्रो प्रायविजंति, पाणविज्जंति / से तं गंडिग्राणुनोगे, से तं अणुप्रोगे। १०८-गण्डिकानुयोग किस प्रकार है ? गण्डिकानुयोग में कुलकरगण्डिका, तीर्थंकरगण्डिका, चक्रवर्तीगण्डिका, दशारगंडिका, बलदेवगंडिका, वासुदेवगण्डिका, गणधरगण्डिका, भद्रबाहुगण्डिका, तपःकर्मगण्डिका, हरिवंशगण्डिका, उत्सर्पिणीगण्डिका, अवसर्पिणीगण्डिका, चित्रान्तरगण्डिका, देव, मनुष्य, तिर्यच, नरकगति, इनमें गमन और विविध प्रकार से संसार में पर्यटन इत्यादि गण्डिकाएँ कही गई हैं / इस प्रकार प्रतिपादन की गई हैं / यह गण्डिकानुयोग है। विवेचन-प्रस्तुत सुत्र में गण्डिकानुयोग का वर्णन है। गण्डिका शब्द प्रबन्ध या अधिकार के लिए दिया गया है / इसमें कुलकरों की जीवनचर्या, एक तीर्थकर और उसके बाद दूसरे तीर्थंकर के मध्य-काल में होनेवाली सिद्धपरम्परा का वर्णन तथा चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, गणधर, हरिवंश, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी तथा चित्रान्तर यानी पहले व दूसरे तीर्थकर के अन्तराल में होनेवाले गद्दीधर राजाओं का इतिहास वणित है / साथ ही उपयुक्त महापुरुषों के पूर्वभवों में देव, मनुष्य, तिथंच और नरक, इन चारों गतियों के जीवनचरित्र तथा वर्तमान और अनागत भवों का इतिहास भी है / संक्षेप में, जब तक उन्हें निर्वाण पद की प्राप्ति नहीं हुई, तब तक के सम्पूर्ण जीवन-वृत्तान्त गण्डिकानुयोग में वर्णन किये गए हैं / चित्रान्तर गण्डिका के विषय में वृत्तिकार ने लिखा है: "चित्तन्तरगण्डिग्राउत्ति, चित्रा अनेकार्था अन्तरे ऋषभाजिततीर्थकरापान्तराले गण्डिकाः चित्रान्तरगण्डिकाः, एतदुक्तं भवति-ऋषभाजिततीर्थकरान्तरे ऋषभवंशसमुद्भूतभूपतीनां शेषगतिगमनव्युदासेन शिवगतिगमनानुत्तरोपपातप्राप्तिप्रतिपादिका गण्डिका चित्रान्तरगण्डिका / " ___ गण्डिकानयोग को गन्ने के उदाहरण से भली भांति समझा जा सकता है। जिस प्रकार गन्ने में गाँठे होने से उसका थोड़ा-थोड़ा हिस्सा सोमित रहता है, उसी प्रकार तीर्थंकरों के मध्य का समय भिन्न-भिन्न इतिहासों के लिए सीमित होता है / इस प्रकार अनुयोग का विषय वणित हुआ। स्मरण रखना चाहिये कि अनुयोग के दोनों प्रकार इतिहास से सम्बन्धित हैं। (5) चूलिका १०६-से कि तं चलिग्रामो? चूलिआनो-पाइल्लाणं च उण्हं पुब्वाणं चूलियानो सेसाई पुब्वाई अचूलिपाई। से तं चूलिपायो। १०६-चलिका क्या है ? उत्तर-आदि के चार पूर्वो में चूलिकाएँ हैं, शेष पूणे में चूलिकाएँ नहीं हैं / यह चूलिकारूप दृष्टिवाद का वर्णन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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