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________________ 182] [नन्दीसूत्र पार्श्वनाथ के शासनकाल का और कुछ महाविदेह क्षेत्र से सम्बन्धित है। आठवें अध्ययन में तीर्थकर मल्लिनाथ के पंच कल्याणकों का वर्णन है तथा सोलहवें अध्ययन में द्रौपदी के पिछले जन्म की कथा ध्यान देने योग्य है तथा उसके वर्तमान और भावी जीवन का भी विवरण है / दूसरे स्कन्ध में केवल पार्श्वनाथ स्वामी के शासनकाल में साध्वियों के गृहस्थजीवन, साध्वीजीवन और भविष्य में होने वाले जोवन का सुन्दर ढंग से वर्णन है। ज्ञाताधर्मकथाङ्ग श्रत की भाषा-शैली अत्यन्त रुचिकर है तथा प्रायः सभी रसों का इसमें वर्णन मिलता है / शब्दालंकार और अर्थालंकारों ने सूत्र की भाषा को सरस और महत्त्वपूर्ण बना दिया है / शेष परिचय भावार्थ में दिया जा चुका है / 7 श्री उपासकदशाङ्ग सूत्र ८६-से कि तं उवासगदसायो ? उवासगदसासु णं समणोवासयाणं नगराई, उज्जाणाणि, चेइयाई, वणसंडाइं, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहानो, इहलोइअ-परलोइया इढिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परियागा, सुअपरिगहा, तवोवहाणाई, सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासपडिवज्जणया, पडिमानो, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाअोवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चायाई प्रो, पुणबोहिलाभा, अंतकिरिआनो अप्राधविज्जति / उवासगदसासु परित्ता बायणा, संखेज्जा अणुयोगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जारो निज्जुत्तीग्रो, संखेज्जाम्रो पडिवत्तीओ। सेणं अंगठ्याए सत्तमे अंगे, एगे सुप्रखंध, दस प्रज्झयणा, दस उद्द सणकाला, दस समुद्दे सण संखज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं, संज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अर्णता पज्जवा परित्ता तसा, अता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइमा जिण-पण्णत्ता भावा प्राधविज्जति, पन्नविज्जलि, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति / से एवं प्राया, एवं नाया, एवं विनाया, एवं चरण-करणपरूवणा प्राधविज्जइ / से तं उवासगदसायो। / / सूत्र 52 / / ८७-प्रश्न-वह उपासकदशा नामक अंग किस प्रकार का है ? उत्तर--उपासकदशा में श्रमणोपासकों के नगर, उद्यान, व्यन्तरायतन, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलोक और परलोक की ऋद्धिविशेष, भोग-परित्याग, दोक्षा, संयम की पर्याय, श्रत का अध्ययन, उपधानतप, शीलव्रत-गुणव्रत, विरमणव्रत-प्रत्याख्यान, पौषधोपवास का धारण करना, प्रतिमाओं का धारण करना, उपसर्ग, संलेखना, अनशन, पादपोपगमन, देवलोक-गमन, पुनः सुकुल में उत्पत्ति, पुन: बोधि-सम्यक्त्व का लाभ और अन्तक्रिया इत्यादि विषयों का वर्णन है। उपासकदशा की परिमित वाचनाएँ, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ (छन्द विशेष) संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ, संख्यात संग्रहणियाँ, और संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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