________________ थी, सुदीर्घ चिन्तन के पश्चात् वि. सं. 2036 वैशाख शुक्ला दशमी, भगवान महावीर कंवल्यदिवस को यह दृढ निश्चय घोषित कर दिया और आगमबत्तीसी का सम्पादन-विवेचन कार्य प्रारम्भ भी। इस साहसिक निर्णय में गुरुभ्राता शासनसेवी स्वामी श्री ब्रजलाल जी म. की प्रेरणा/प्रोत्साहन तथा मार्गदर्शन मेरा प्रमुख सम्बल बना है। साथ ही अनेक मुनिवरों तथा सदगृहस्थों का भक्ति-भाव भरा सहयोग प्राप्त हुआ है, जिनका नामोल्लेख किये बिना मन सन्तुष्ट नहीं होगा। आगम अनुयोग शैली के सम्पादक मुनि श्री कन्हैयालालजी म० "कमल", प्रसिद्ध साहित्यकार श्री देवेन्द्रमुनिजी म. शास्त्री, प्राचार्य श्री आत्मारामजी म. के प्रशिष्य भण्डारी श्री पदमचन्दजी म० एवं प्रवचनभूषण श्री अमरमुनिजी, विद्वद्रत्न श्री ज्ञानमुनिजी म०; स्व० विदुषी महासती श्री उज्ज्वलकुवरजी म० की सुशिष्याएं महासती दिव्यप्रभाजी, एम. ए., पी-एच. डी.; महासती मुक्तिप्रभाजी एम. ए., पी-एच. डी. तथा विदुषी महासती श्री उमरावकूवरजी म० 'अर्चना', विश्रुत विद्वान् श्री दलसुखभाई मालवणिया, सुख्यात विद्वान पं० श्री शोभाचन्द्र जी भारिल्ल, स्व. पं. श्री हीरालालजी शास्त्री, डा० छगनलालजी शास्त्री एवं श्रीचन्दजी सुराणा "सरस" आदि मनीषियों का सहयोग प्रागमसम्पादन के इस दुरूह कार्य को सरल बना सका है। इन सभी के प्रति मन यादर व कृतज्ञ भावना से अभिभूत है। इसी के साथ सेवा-सहयोग की दृष्टि से सेवाभावी शिष्य मुनि विनयकुमार एवं महेन्द्र मुनि का साहचर्य-सहयोग, महासती श्री कानकूवरजी, महासती श्री झणकारकुवरजी का सेवाभाव सदा प्रेरणा देता रहा है। इस प्रसंग पर इस कार्य के प्रेरणा-स्रोत स्व० श्रावक चिमनसिंहजी लोढ़ा, स्व० श्री पुखराजजी सिसोदिया का स्मरण भी सहजरूप में हो पाता है जिनके अथक प्रेरणा-प्रयत्नों से प्रागम समिति अपने कार्य में इतनी शीघ्र सफल हो रही है। दो वर्ष के अल्पकाल में ही दस प्रागम ग्रन्थों का मुद्रण तथा करीब 15-20 अागमों का अनुवाद-सम्पादन हो जाना हमारे सब सहयोगियों की गहरी लगन का द्योतक है। मुझे सुदृढ विश्वास है कि परम श्रद्धेय स्वर्गीय स्वामी श्री हजारीमलजी महाराज आदि तपोपूत ग्रात्माओं के शुभाशीर्वाद से तथा हमारे श्रमणसंघ के भाग्यशाली नेता राष्ट्र-संत आचार्य श्री आनन्दऋषिजी म. प्रादि मुनिजनों के सद्भाव-सहकार के बल पर यह संकल्पित जिनवाणी का सम्पादन प्रकाशन कार्य शीघ्र ही सम्पन्न होगा। इसी शुभाशा के साथ, -मुनि मिश्रीमल "मधुकर" (युवाचार्य) 00 [14] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org