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________________ 1101 [नन्दीसूत्र एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया / उसका नाम ब्रह्मदत्त रखा गया / ब्रह्मदत्त के बचपन में ही राजा ब्रह्म का देहान्त हो गया अतः राज्य का भार ब्रह्मदत्त के वयस्क होने तक के लिए राजा के मित्र दीर्घपृष्ठ को सौंपा गया / दीर्घपृष्ठ चारित्रहीन था और रानी चुलनी भी। दोनों का अनुचित सम्बन्ध स्थापित हो गया। राजा ब्रह्म का धनु नामक मन्त्री राजा व राज्य का बहुत वफादार था। उसने बड़ी सावधानी पूर्वक राजकुमार ब्रह्मदत्त की देख-रेख की और उसके बड़े होने पर दीर्घपृष्ठ तथा रानी के अनुचित सम्बन्ध के विषय में बता दिया / युवा राजकुमार ब्रह्मदत्त को माता के अनाचार पर बड़ा क्रोध पाया / उसने उन्हें चेतावनी देने का निश्चय किया। अपने निश्चय के अनुसार वह पहली बार एक कोयल और एक कौए को पकड़ लाया तथा अन्तःपुर में माता के समक्ष प्राकर बोला- "इन पक्षियों के समान जो वर्णसंकरत्व करेंगे, उन्हें मैं निश्चय ही दंड दूंगा।" रानी पुत्र की बात सुनकर घबराई पर दीर्घपृष्ठ ने उसे समझा दिया-"यह तो बालक है, इसकी बात पर ध्यान देने की क्या जरूरत है ?" दूसरी बार एक श्रेष्ठ हथिनी और एक निकृष्ट हाथी को साथ देखकर भी राजकुमार ने रानी एवं दीर्घपृष्ठ को लक्ष्य करते हुए व्यंगात्मक भाषा में अपनी धमकी दोहराई। तीसरी बार वह एक हंसिनी और बगुले को लाया तथा गम्भीर स्वर से कहा “इस राज्य में जो भी इनके सदृश आचरण करेगा उन्हें मैं मृत्यु-दंड दूंगा।" तीन बार इसी तरह की धमकी राजकुमार से सुनकर दीर्घपृष्ठ के कान खड़े हो गये / उसने सोचा--"अगर मैं राजकुमार को नहीं मरवाऊँगा तो यह हमें मार डालेगा।" यह सोचकर वह रानी से बोला-'अगर हमें अपना मार्ग निष्कंटक बनाकर सदा सुखपूर्वक जीवन बिताना है तो राजकुमार का विवाह करके उसे पत्नी सहित एक लाक्षागृह में भेजकर उसमें आग लगा देना चाहिए।" कामांध व्यक्ति क्या नहीं कर सकता ! रानी माता होने पर भी पुत्र की हत्या के लिए तैयार हो गई। राजकुमार ब्रह्मदत्त का विवाह राजा पुष्पचूल की कन्या से कर दिया गया तथा लाक्षागृह भी बड़ा सुन्दर बन गया। उधर जब मन्त्री धनु को सारे षडयन्त्र का पता चला तो वह दीर्घपृष्ठ के समीप गया और बोला-"देव ! मैं वृद्ध हो गया हूँ। अब काम करने की शक्ति भी नहीं रह गई है। अतः शेष जीवन में भगवद्-भजन में व्यतीत करना चाहता हूँ। मेरा पुत्र वरधनु योग्य हो गया है, अब राज्य की सेवा वही करेगा / इस प्रकार दीर्घपृष्ठ से प्राज्ञा सेकर मंत्री धनु वहां से रवाना हो गया और गंगा के किनारे एक दानशाला खोलकर दान देने लगा। पर इस कार्य को प्राड़ में उसने अतिशीघ्रता से एक सुरंग खदवाई जो लाक्षागह में निकली थी। राजकूमार का विवाह तथा लाक्षागृह का निर्माण सम्पन्न होने तक सुरंग भी तैयार हो चुकी थी। विवाह के पश्चात् नवविवाहित ब्रह्मदत्त कुमार और दुल्हन को वरधनु के साथ लाक्षागृह में पहुँचाया गया, किन्तु अर्धरात्रि के समय अचानक आग लग गई और लाक्षागृह पिघलने लगा / यह देखकर कुमार ने घबराकर वरधनु से पूछा--"मित्र ! यह क्या हो रहा है ? आग कैसे लग गई ?" तब वरधनु ने संक्षेप में दीर्घपृष्ठ और रानी के षड्यंत्र के विषय में बताया। साथ ही कहा-"प्राप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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