________________ [उत्तराध्ययनसूत्र 14 UNS worm :: ov असंखकाल असंखकाल असंखयं जीविय असंखिज्जाणोसप्पि अह अहिं ठाणेहि अह अन्नया कयाई अह प्रासगो अह ऊसिएण अह कालमि अह केसरंमि अह चउद्दसहिं अह जे संवुडे अह तत्थ अह तायगो अह तेणेव 36 114 अहिज्ज वेए 36 123 अहिंस-सच्चं 1 अहीण पंचिंदिय 33 अहीवेगंत अहे वय 8 अहो ते अज्जवं 6 अहो ते निज्जियो 11 अहो वण्णो 32 अंगपच्चंग 4 अंगुलं सत्त 6 अंतमुहुत्तंमि 25 अंतोमुत्तमद्ध 5 अंतोहियय 8 अंधयारे अंधिया पोत्तिया WwKMMM. 45 147 " प्रा अह ते तत्थ अह पच्छा ग्रह पन्नरसहि अह पालियस्स अह पंहि अह भवे पइन्ना प्रहमासी अह मोणेणं अह राया अह सा भमरसन्निभे अह सारही तो भणइ अह सारही विचितेइ ग्रह सा रायवरकन्ना अह से तत्थ अह से सुगंध अह सो तत्थ अह सोऽवि अह वा तइयाए अहवा सपरिकम्मा अहाह जणग्रो 0 0 rural wal990 प्राउक्काय 41 आउत्तया पागए कायवोस्सग्गे प्रोगासे तस्स आगासे गंग प्राणानिसकरे आमोसे लोमहारे य पायरिय पायरिय पायरिय पायरिएहि 15 पायरियं कुवियं आयवस्स पायाणं 24 पायामगं 14 पायंके प्रारभडा 21 प्रारंभापो 30 13 इइ इत्तरियमि 228 इइ एएसु XGOGmWK or WORW64G GHWA 31 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org