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________________ परिशिष्ट 1: उत्तराध्ययन को कतिपय सूक्तियाँ] [695 उविच्च भोगा पुरिसं चयन्ति दुमं जहा खोणफलं व पक्खी // 13 / 13 / / जैसे वृक्ष के फल क्षीण हो जाने पर पक्षी उसे छोड़कर चले जाते हैं, वैसे ही पुरुष का पुण्य क्षीण होने पर भोगसाधन उसे छोड़ देते हैं, उसके हाथ से निकल जाते हैं / वेया अहीया न हबन्ति ताणं // 14 / 12 / / अध्ययन कर लेने मात्र से वेद [शास्त्र] रक्षा नहीं कर सकते / धणेण कि धम्मधुराहिगारे / 14 / 17 / / धर्म की धुरा को खोंचने के लिए धन को क्या अावश्यकता है ? विहाँ तो सदाचार हो अपेक्षित है। नो इन्दियग्गेज्य अमुत्तभावा अमुत्तभावा विय होइ निच्चं // 14 / 19 / / आत्मा अमूर्त तत्त्व होने के कारण इन्द्रियग्राह्य नहीं है और जो भाव अमूर्त होते हैं वे अविनाशी होते हैं। अज्झत्थ हेउं निययस्स बन्धो // 14 / 19 / / अन्दर के विकार ही वस्तुतः बन्धन के हेतु हैं / मच्चुणामाहओ लोगो, जराए परिवारिओ / / 14123 / / जरा से घिरा हुआ यह संसार मृत्यु से पीडित हो रहा है / जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जान्ति राइयो / / 14 / 25 / / जो रात्रियाँ बीत जाती हैं, वे पुन: लोट कर नहीं पातों, किन्तु जो धर्म का आचरण करता रहता है, उसकी रात्रियाँ सफल हो जाती हैं / जस्सस्थि मच्चुणा सक्खं, जस्स वऽस्थि पलायणं / जो जाणे न मरिस्सामि, सो हु कंखे सुए सिया / / 14 / 27 / / मृत्यु के साथ जिसकी मित्रता हो, जो भाग कर मृत्यु से बच सकता हो अथवा जो यह जानता हो कि मैं कभी मरूगा ही नहीं, वही कल पर भरोसा कर सकता है / सद्धा खमं णो विणइत्तु रागं / / 14 / 28 / / धर्म-श्रद्धा हमें राग से-पासक्ति से मुक्त कर सकती है। जुष्णो व हंसो पडिसोत्तगामी // 14 // 33 // बूढ़ा हंस प्रतिस्रोत [जलप्रवाह के सम्मुख] में तैरने से डूब जाता है। अर्थात् असमर्थ व्यक्ति समर्थ का प्रतिरोध नहीं कर सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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