________________ [उत्तराध्ययनसून भयंता अकरेन्ता य, बन्धमोक्खपइण्णिणो / वायावारियमेत्तेण, समासासेन्ति अप्पयं / 6 / 10 / / जो केवल बोलते हैं करते कुछ नहीं, वे बन्ध और मोक्ष की बातें करने वाले दार्शनिक केवल वाणी के बल पर ही अपने आप को आश्वस्त किए रहते हैं। __ न चित्ता तायए भासा, कुप्रो विज्जाणुसासणं // 6 // 11 // विविध भाषाओं का पाण्डित्य मनुष्य को दुर्गति से नहीं बचा सकता। फिर विद्याओं का अनुशासन-अध्ययन किसी को कैसे बचा सकेगा ? / पुवकम्मखयहाए, इमं देहं समुद्धरे / / 6 / 14 / / पूर्वकृत कर्मों को नष्ट करने के लिए इस देह को सार-सम्भाल रखनी चाहिये / आसुरीयं दिसं वाला, गच्छंति अवसा तमं // 7 // 10 // अज्ञानी जीव विवश हुए अन्धकाराच्छन्न आसुरी गति को प्राप्त होते हैं / बहुकम्मलेवलित्ताणं, बोही होई सुदुल्लहा तेसि / / 8 / 15 / / जो आत्माएँ बहुत अधिक कर्मों से लिप्त हैं, उन्हें बोधि प्राप्त होना अति दुर्लभ है। कसिणं पि जो इमं लोयं, पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स / तेणावि से ण सन्तुस्से, इइ दुप्पूरए इमे आया / / 8 / 16 / / मानव की तृष्णा बड़ी दुष्पूर है। धन-धान्य से भरा हुया यह समग्र विश्व भी यदि किसी एक व्यक्ति को दे दिया जाय, तब भी वह उससे संतुष्ट नहीं हो सकता। . जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवडढई। दोमासकयं कज्ज, कोडीए वि न निट्ठियं / / 8 / 17 / / ज्यों-ज्यों लाभ होता है, त्यों-त्यों लोभ बढ़ता है। इस प्रकार लाभ से लोभ निरन्तर बढ़ता हो जाता है / दो मात्रा सोने की अभिलाषा करने वाला करोड़ों से भी संतुष्ट नहीं हो पाता / जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिणे / एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओ // 6 / 34 / / भयंकर युद्ध में लाखों दुर्दान्त शत्रुओं को जीतने की अपेक्षा अपने आपको जीत लेना ही बड़ी विजय है। सव्वं अप्पे जिए जियं / / 6 / 36 / / एक अपने [विकारों को जीत लेने पर सभी को जीत लिया जाता है / इच्छा हु आगाससमा अणंतिया // 6 / 48 / / इच्छाएँ आकाश के समान अनन्त-अपार हैं। कामे पत्थेमाणा अकामा जन्ति दुग्गई // 6 // 53 // कामभोगों की लालसा-ही-लालसा में प्राणी एक दिन उन्हें भोगे विना हो दुर्गति में चले जाते हैं। ... ... .. .. .. . . . . . . . . . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org