________________ 638] [उत्तराध्ययनसूत्र {16-20] जो पुद्गल स्पर्श से परिणत हैं, वे पाठ प्रकार के कहे गए हैं—कर्कश, मृदु, गुरु और लघु (हलका); गीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष / इस प्रकार ये स्पर्श से परिणत पुद्गल कहे गए The 21. संठाणपरिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया। परिमण्डला य बट्टा तंसा चउरंसमायया / / [21] जो पुद्गल संस्थान से परिणत हैं, वे पांच प्रकार के हैं—परिमण्डल, वृत्त, व्यस्र, त्रिकोण), चतुरस्र (चौकोर) और आयत (लम्बे)। 22. वण्णनो जे भवे किण्हे भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य / / [22] जो पुद्गल वर्ण से कृष्ण है, वह गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य ( –अनेक विकल्पों वाला) है। 23. बण्णओ जे भवे नोले भइए से उ गन्धयो। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य / / [23] जो पुद्गल वर्ण से नील है. वह गन्ध से, रस से, स्पर्श से और संस्थान से भाज्य है / 24. वग्णओ लोहिए जे उ भइए से उ गन्धओ। रसग्रो फासओ चेव भइए संठाणो वि य // [24] जो पुद्गल वर्ण से रक्त है, वह गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य है / 25. वण्णो पीयए जे उ भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य / / [25] जो पुद्गल वर्ण से पीत है, वह गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य है / 26. वण्णओ सुविकले जे उ भइए से उ गन्धप्रो। रसग्रो फासपो चेव भइए संठाणो वि य // [26] जो पुद्गल वर्ण से शुक्ल है, वह गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य है / 27. गन्धओ जे भवे सुब्भी भइए से उ वण्णओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य // [27] जो पुद्गल गन्ध से सुगन्धित है, वह वर्ण, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य है / 28. गन्धओ जे भवे दुम्भो भइए से उ वण्णओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य / [28] जो पुद्गल गन्ध से दुर्गन्धित है, वह वर्ण, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org