________________ 626] [उत्तराध्ययनसूत्र विवेचन-प्रस्तुत गाथा में हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह (इच्छाकाम और लोभ) इन पांचों पाश्रवों से दूर रहने और पांच संवरों का अर्थात् पंच महावतों के पालन में जागृत रहने का विधान है। इच्छाकाम और लोभ का तात्पर्य-इच्छारूप काम का अर्थ है--अप्राप्त वस्तु की कांक्षा, और लोभ का अर्थ है-लब्धवस्तुविषयक गृद्धि / ' अनगार का निवास और गृहकर्मसमारम्भ 4. मणोहरं चित्तहरं मल्लधूवेण वासियं / __सकवाडं पण्डुरुल्लोयं मणसा वि न पत्थए / [4] मनोहर, चित्रों से युक्त, माल्य और धूप से सुवासित किवाड़ों सहित, श्वेत चंदोत्रा से युक्त स्थान की मन से भी प्रार्थना (अभिलाषा) न करे / 5. इन्दियाणि उ भिक्खुस्स तारिसम्मि उवस्सए / दुक्कराई निवारेउं कामरागविवडणे / / [5] (क्योंकि) कामराग को बढ़ाने वाले, वैसे उपाश्रय में भिक्षु के लिए इन्द्रियों का निरोध करना दुष्कर है। 6. सुसाणे सुन्नगारे वा रुक्खमूले व एगओ। पइरिक्के परकडे वा वासं तत्थऽभिरोयए / / [6] अत: एकाकी भिक्षु श्मशान में, शून्य गृह में, वृक्ष के नीचे (मूल में) परकृत (दूसरों के लिए या पर के द्वारा बनाए गए) प्रतिरिक्त (एकान्त या खाली) स्थान में निवास करने की अभिरुचि रखे। 7. फासुयम्मि अणाबाहे इत्थोहि अणभिदुए / तत्थ संकप्पए वासं भिक्खू परमसंजए / [7] परमसंयत भिक्षु प्रासुक, अनाबाध, स्त्रियों के उपद्रव से रहित स्थान में रहने का संकल्प करे। 8. न सयं गिहाई कुज्जा व अन्न हि कारए / गिहकम्मसमारम्भे भूयाणं दीसई वहो / [+] भिक्षु न स्वयं घर बनाए और न दूसरों से बनवाए (क्योंकि) गृहकर्म के ममारम्भ में प्राणियों का वध देखा जाता है। 9. तसाणं थावराणं च सुहुमाण बायराण य / तम्हा गिहसमारम्भं संजओ परिवज्जए / 1. बहवत्ति, अ. रा. कोप भा. 1, पृ. 280 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org