________________ चौतीसवां अध्ययन : लेश्याध्ययन] {611 1. नामद्वार 3. किण्हा नीला य काऊ य तेऊ पम्हा तहेव य / सुक्कलेसा य छट्ठा उ नामाइं तु जहक्कम / / [3] लेश्याओं के नाम इस प्रकार हैं-(१) कृष्ण, (2) नील, (3) कापोत (4) तेजस (5) पद्म, (6) शुक्ल / 2. वर्णद्वार 4. जीमूनिद्धसंकासा गवलारिटुगसन्निभा। खंजणंजण-नयणनिमा किण्हलेसा उ वण्णओ // [4] कृष्णलेश्या वर्ण की अपेक्षा से, स्निग्ध (-सजल काले) मेघ के समान, भैंस के सींग एवं रिष्टक (अर्थात्-कौए या अरीठे) के सदृश, अथवा खंजन (गाड़ी के प्रोगन), अंजन (काजल या सुरमा) एवं आँखों के तारे (कीकी) के समान (काली) है।। 5. नीला--सोगसंकासा चासपिच्छसमप्पभा। वेरुलियनिद्धसंकासा नीललेसा उवण्णप्रो॥ [5] नीललेश्या वर्ण की अपेक्षा से नील अशोक वृक्ष के समान, चास-पक्षी की पांख जैसी, अथवा स्निग्ध वैडूर्य रत्न-सदृश (अतिनील) है / 6. अयसीपुष्फसंकासा कोइलच्छदसन्निभा। पारेवयगीवनिभा काउलेसा उ वण्णओ / / [6] कापोतलेश्या वर्ण की अपेक्षा से अलसी के फूल जैसी, कोयल की पांख सरीखी तथा कबूतर की गर्दन (ग्रीवा) के सदृश (अर्थात् - कुछ काली और कुछ लाल) है / 7. हिंगुलुयधाउसंकासा तरुणाइच्चसन्निभा / सुयतुण्ड-पईवनिभा तेउलेसा उ वण्णओ / / 7] तेजोलेश्या वर्ण की अपेक्षा से-हींगलू तथा धातु-गैरु के समान, तरुण (उदय होते हुए) सूर्य के सदृश तथा तोते की चोंच या (जलते हुए) दीपक के समान (लाल रंग की) है। 8. हरियालभेयसंकासा हलिहाभेयसंनिभा / सणासणकुसुमनिभा पम्हलेसा उ वण्णओ। [8] पद्मलेश्या वर्ण की अपेक्षा से हड़ताल (हरिताल) के टुकड़े जैसी, हल्दी के रंग सरीखी तथा सण और असन (बीजक) के फूल के समान (पीली) है / 9. संखंककुन्दसंकासा खीरपूरसमप्पभा। रययहारसंकासा सुक्कलेसा उ वण्णओ / / [6] शुक्ललेश्या वर्ण की अपेक्षा से शंख, अंक रत्न (स्फटिक जैसे श्वेत रत्नविशेष) एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org