________________ अद्राईसवाँ अध्ययन : मोक्षमार्गगति] [483 सम्यक् तप : भेद-प्रभेद 34. तवो य दुविहो वुत्तो बाहिरऽभन्तरो तहा। बाहिरो छविहो वुत्तो एवमन्भन्तरो तयो / / [34] तप दो प्रकार का कहा गया है-बाह्य और आभ्यन्तर / बाह्य तप छह प्रकार का है / इसी प्रकार प्राभ्यन्तर तप भी छह प्रकार का है। विवेचन-मोक्ष का चतुर्थ साधन-तफ अंतरंग एवं बहिरंग रूप से कर्मक्षय (निर्जरा) या प्रात्मविशुद्धि का कारण होने से मुक्ति का विशिष्ट साधन है। इसलिए इसे पृथक् मोक्षमार्ग के रूप में यहाँ स्थान दिया गया है। तप की भेद-प्रभेदसहित विस्तृत व्याख्या 'तपोमार्गगति' नामक तीसवें अध्ययन में दी गई है। मोक्षप्राप्ति के लिए चारों की उपयोगिता ...35. नाणेण जाणई भावे दंसणेण य सद्दहे। चरित्तेण निगिण्हाइ तवेण परिसुज्नई // [35] (आत्मा) ज्ञान से जीवादि भावों (पदार्थों) को जानता है, दर्शन से उन पर श्रद्धान करता है, चारित्र से (नवीन कर्मों के पाश्रव का) निरोध करता है और तप से परिशुद्ध (पूर्वसंचित कर्मों का क्षय) होता है। 36. खवेत्ता पुन्वकम्माइं संजमेण तवेण य / सव्वदुक्खप्पहीणट्ठा पक्कमन्ति महेसिणो / __ --त्ति बेमि। [36] सर्वदुःखों से मुक्त होने के लिए महर्षि संयम और तप से पूर्वकर्मों का क्षय करके (मुक्ति को) प्राप्त करते हैं। -ऐसा मैं कहता हूँ। / मोक्षमार्गगति : अट्ठाईसवां अध्ययन समाप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org