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________________ अट्ठाईसवाँ अध्ययन : मोक्षमार्गगति अध्ययन-सार * प्रस्तुत अध्ययन का नाम 'मोक्षमार्गगति' (मोक्खमग्गगई) है। * मोक्ष साधुजीवन का अन्तिम लक्ष्य है और मार्ग उसको पाने का उपाय / गति साधक का अपना यथार्थ पुरुषार्थ है। साध्य हो, किन्तु साधन न मिले तो साध्य प्राप्त नहीं किया जा सकता / इसी प्रकार साध्य भी हो, साध्यप्राप्ति का उपाय भी हो, किन्तु उसकी ओर चरण न बढ़ें तो वह प्राप्त नहीं हो सकता। * प्रस्तुत अध्ययन में मोक्षप्राप्ति के चार उपाय (साधन) बताए हैं—ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप / यद्यपि तत्त्वार्थसूत्र में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र को मोक्षमार्ग बताया गया है और यहाँ तप को अधिक बताया है, किन्तु यह विवक्षाभेद के कारण ही है / चारित्र में ही तप का समावेश हो जाता है। इस चतुरंग मोक्षमार्ग में गति करने वाले साधक ही उस चरम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। * प्रस्तुत अध्ययन की 1 से 14 वी गाथा तक ज्ञान और ज्ञेय (प्रमेय) का निरूपण है। 15 से 31 वी गाथा तक दर्शन का विविध पहलुओं से वर्णन है। 32 से 34 वी गाथा तक चारित्र का प्रतिपादन है और 35 वी गाथा में तप का निरूपण है। * मोक्षप्राप्ति का प्रथम साधन सम्यग्ज्ञान है। बिना ज्ञान के कोरी क्रिया अंधी है और क्रिया के बिना अतः सर्वप्रथम ज्ञान के निरूपण के सन्दर्भ में 5 ज्ञान और उसके ज्ञेय द्रव्यगुण-पर्याय तथा षद्रव्य का प्रतिपादन है। * दूसरा साधन दर्शन है, जिसका विषय है—नौ तत्त्वों की उपलब्धि–वास्तविक श्रद्धा / वे तत्त्व यहाँ स्वरूपसहित बताए हैं। फिर दर्शन को निसर्गरुचि आदि 10 प्रकारों से समझाया गया है। * मोक्षप्राप्ति का तृतीय मार्ग है--चारित्र / उसके सामायिक आदि 5 भेद हैं, जिनका प्रतिपादन यहाँ किया गया है। * अन्त में मोक्ष के चतुर्थ साधन तप के दो रूप---वाह्य और आभ्यन्तर बता कर प्रत्येक के 6-6 भेदों का सांगोपांग निरूपण किया है / कुछ अनिवार्यताएँ बताई हैं--दर्शन के बिना ज्ञान सम्यक् नहीं होता, सम्यग्ज्ञान के विना चारित्र असम्यक् है और चारित्र नहीं होगा, तब तक मोक्ष नहीं होता। मोक्ष के बिना आत्मसमाधि, समग्र आत्मगुणों का परिपूर्ण विकास या निर्वाण प्राप्त नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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