________________ सत्ताईसवाँ अध्ययन : खलुकीय] [457 को सुखपूर्वक पार करता है, उसी तरह योग (संयम) में संलग्न मुनि संसार को पार कर जाता है / प्राशय यह है शिष्यों के विनीतभाव को देख कर गुरु स्वयं समाधिमान हो जाता है। शिष्य भी विनीतभाव से स्वयं संसार को पार कर जाते हैं। इस प्रकार विनीत शिष्य एवं सदाचार्य का योगसम्बन्ध संसार का उच्छेदकर होता है।' अविनीत शिष्यों को दुष्ट वृषभों के विविधरूपों से उपमित 3. खलुके जो उ जोएइ विहम्माणो किलिस्सई / ___ असमाहिं च वेएइ तोत्तओ य से भज्जई / / [3] जो खलंक (दुष्ट-अविनीत) बैलों को वाहन में जोतता है, वह (व्यक्ति) उन्हें मारता हुआ क्लेश पाता (थक जाता) है; असमाधि का अनुभव करता है और (अन्त में) उस (हांकने वाले व्यक्ति) का चाबुक भी टूट जाता है / 4. एगं उसइ पुच्छंमि एगं विन्धइऽभिक्खणं / एगो भंजइ समिलं एगो उप्पहपट्ठिओ॥ [4] (वह क्षुब्ध वाहक) किसी (एक) की पूंछ काट देता है, तो किसी (एक) को बार-बार बींधता है और उन बैलों में से कोई एक जुए की कील (समिला) को तोड़ देता है, तो दूसरा उन्मार्ग पर चल पड़ता है। 5. एगो पडइ पासेणं निवेसइ निवज्जई / उक्कुद्दइ उफ्फिडई सढे बालगवी वए / [5] कोई (दुष्ट बैल) मार्ग के एक अोर (दायें या बाएँ पार्श्व में) गिर पड़ता है, कोई बैठ जाता है, कोई लम्बा लेट जाता है, कोई कूदता है, कोई उछलता (या छलांग मारता) है, कोई शठ (धूर्त बैल) तरुण गाय की ओर भाग जाता है। 6. माई मुद्धण पडई कुद्ध गच्छइ पडिप्पहं / __मयलक्खेण चिट्टई वेगेण य पहावई / / [6] कोई कपटी (मायी) बैल सिर को निढाल बना कर (भूमि पर) गिर पड़ता है, कोई क्रोधित हो कर प्रतिपथ (-उत्पथ या उलटे मार्ग) पर चल पड़ता है, कोई मृतकवत् हो कर पड़ा रहता है, तो कोई वेग से दौड़ने लगता है। 1. (क) उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर भावनगर) भा. 2, पत्र 219 (ख) उत्तरा. (अनुवाद टिप्पण) साध्वी चन्दना, पृ. 282 .........""योगे संयमव्यापारे (विनीत) शिष्यान वाहयतः आचार्यस्य संसारः अतिवर्तते, शिष्याणां विनीतत्त्वं दृष्ट्वा स्वयं समाधिमान् जायते / शिष्यास्तु विनीतत्वेन स्वयं संसारमुल्लंघ्यन्ते एवं, एवमुभयोविनीतशिष्यसदाचार्ययोर्योगः–सम्बन्धः संसारच्छेदकर इति भावः / " -उत्तरा. वृत्ति. अ. भा. रा. को. 3, पृ. 725 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org