________________ पच्चीसवाँ अध्ययन : यज्ञीय] [433 विवेचन-विशिष्ट शब्दों के विशेषार्थ-निक्खंतो-भागवती दीक्षा ग्रहण की। अनुत्तरं सिद्धि पत्ता-अनुत्तर–सर्वोत्कृष्ट सिद्धि-मुक्तिगति प्राप्त की।' यज्ञीय : पच्चीसवाँ अध्ययन समाप्त // 1. उत्तरा. वृत्ति, अभि. रा. कोष भा. 4, पृ. 1422 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org