________________ तेईसवाँ अध्ययन : केशि-गौतमीय] 89. तोसिया परिसा सव्वा सम्मग्गं समुवट्ठिया। संथुया ते पसीयन्तु भयवं केसिगोयमे // __-त्ति बेमि [6] (इस प्रकार) वह सारी सभा (देव, असुर और मनुष्यों से परिपूर्ण परिषद्) धर्मचर्चा से सन्तुष्ट तथा सन्मार्ग--मुक्तिमार्ग में समुपस्थित (समुद्यत) हुई / उसने भगवान् केशी और गौतम की स्तुति की कि वे दोनों (हम पर) प्रसन्न रहें। __ --ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन—महत्थऽस्थविणिच्छओ-महार्थ अर्थात् मोक्ष के साधनभूत शिक्षाव्रत एवं तत्त्वादि का निर्णय हुआ। केशि-गौतमीय: तेईसवाँ अध्ययन समाप्त // 1. उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका भा. 3, पृ. 968 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org