________________ बाईसवां अध्ययन : रथनेमीय] [379 लौटा सकते हो ? महावत ने कहा-अगर आप रानी को तथा मुझे अभयदान दें तो मैं वैसा कर सकता हूँ। राजा ने 'तथाऽस्तु' कहा / तब महावत ने अपने अंकुश से हाथी को धीरे-धीरे लौटा लिया / इसी तरह राजीमती ने भी संयम से पतित होने की भावना वाले रथनेमि को अहितकर पथ से धीरे-धीरे वचन रूपी अंकुश से लौटा कर चारित्रधर्म में स्थापित किया।' रथनेमि पुनः संयम में दृढ़ 49. मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइन्दिओ। सामग्णं निच्चलं फासे जावज्जीवं दढवओ। [46] वह (रथनेमि) मन-वचन-काया से गुप्त, जितेन्द्रिय एवं महाव्रतों में दृढ़ हो गया तथा जीवनपर्यन्त निश्चलभाव से श्रामण्य का पालन करता रहा / उपसंहार 50. उग्गं तवं चरित्ताणं जाया दोगिण वि केवली। ___सव्वं कम्म खवित्ताणं सिद्धि पत्ता अणुत्तरं / / [50] उग्र तप का आचरण करके दोनों ही केवलज्ञानी हो गए तथा समस्त कर्मों का क्षय करके उन्होंने अनुत्तर सिद्धि प्राप्त की। 51. एवं करेन्ति संबुद्धा पण्डिया पवियक्खणा / विणियदृन्ति भोगेसु जहा सो पुरिसोत्तमो॥ -त्ति बेमि। [51] सम्बुद्ध, पण्डित और प्रविचक्षण पुरुष ऐसा ही करते हैं / पुरुषोत्तम रथनेमि की तरह वे भोगों से निवृत्त हो जाते हैं। ___-ऐसा मैं कहता हूँ। दोणि विसिद्धि पत्ता-रथनेमि और राजीमती दोनों केवली हुए और समस्त भवोपग्राही कर्मो का क्षय करके सर्वोत्कृष्ट सिद्धि प्राप्त की। __ रथनेमि का संक्षिप्त जीवन-वृत्तान्त–सोरियपुर के राजा समुद्रविजय और रानी शिवादेवी के चार पुत्र थे-अरिष्टनेमि, रथनेमि, सत्यनेमि और दढनेमि / अरिष्टनेमि 22 वें तीर्थकर अहन्त हुए, रथनेमि प्रत्येकबुद्ध हुए। भगवान् रथनेमि 400 वर्ष तक गृहस्थपर्याय में, 1 वर्ष छद्मावस्था में और 500 वर्ष तक केवलीपर्याय में रहे / इनकी कुल आयु 601 वर्ष की थी। इतनी ही आयु तथा कालमान राजीमती का था। ॥रथनेमीय : बाईसवाँ अध्ययन समाप्त। 1. (क) वही, पत्र 496 (ख) उत्त. प्रिय. टीका भा. 3, पृ. 812-813 2. बृहद्वृत्ति, पत्र 496 3. नियुक्ति गाथा, 443 से 447, बृहद्वृत्ति, पत्र 496 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org