________________ बाइसमं अज्झयणं : बाईसवाँ अध्ययन रहनेमिजं : रथनेमीय तीर्थंकर अरिष्टनेमि का परिचय 1. सोरियपुरंमि नयरे आसि राया महिड्ढिए / वसुदेवे त्ति नामेणं रायः-लक्खण-संजुए / [1] सोरियपुर नगर में महान् ऋद्धि से सम्पन्न तथा राजा के लक्षणों (चिह्नों तथा गुणों) से युक्त वसुदेव नाम का राजा था / 2. तस्स भज्जा दुवे प्रासी रोहिणी देवई तहा। तासि दोण्हं पि दो पुत्ता इट्ठा य राम-केसवा / / [2] उसकी दो पत्नियाँ (भार्याएँ) थीं-रोहिणी और देवकी। उन दोनों के भी क्रमश: दो वल्लभ पुत्र थे—राम (बलदेव) और केशव (कृष्ण) / 3. सोरियपुरंमि नयरे आसी राया महिड्ढिए / समुद्दविजए नाम राय-लक्खण-संजुए॥ [3] (उसी) सोरियपुर नगर में महान् ऋद्धि से सम्पन्न राज-लक्षणों से युक्त समुद्रविजय नाम का राजा था। 4. तस्स भज्जा सिवा नाम तोसे पुत्तो महायसो। भगवं अरिटुनेमि त्ति लोगनाहे दमीसरे // [4] उसकी शिवा नाम की पत्नी थी, जिसके पुत्र महायशस्वी, जितेन्द्रियों में श्रेष्ठ, लोकनाथ भगवान् अरिष्टनेमि थे। 5. सोऽरिट्टनेमि-नामो उ लक्खणस्सर-संजुओ। अट्ट सहस्सलक्खणधरो गोयमो कालगच्छवी // [5] वह अरिष्टनेमि स्वर-लक्षणों से सम्पन्न थे। एक हजार आठ शुभ लक्षणों के भी धारक थे / उनका गोत्र गौतम था और वह वर्ण से श्याम थे। विवेचन–सोरियपुरंमि नयरे : तीन रूप (1) सोरियपुर, (2) शौर्यपुर अथवा (3) सौरीपुर / वर्तमान में प्रागरा से लगभग 42 मील दूर बटेश्वर तीर्थ है, जहाँ प्रतिवर्ष मेला लगता है। बटेश्वर के निकट ही भगवान् अरिष्टनेमि का जन्मस्थान (वर्तमान में) सौरीपुर है। प्रस्तुत गाथा 1 और 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org