________________ बाईसवाँ अध्ययन : रथनेमीय अध्ययन-सार * प्रस्तुत अध्ययन का नाम रथनेमीय (रहनेमिज्ज) है। इस अध्ययन में रथनेमि से सम्बन्धित वर्णन मुख्य होने से इसका नाम 'रथनेमीय' रखा गया है। * वैसे इस अध्ययन के पूर्वार्द्ध में राजा समुद्रविजय के ज्येष्ठ पुत्र अरिष्टनेमि तथा उनके गुणों, लक्षणों, उनकी राजीमती से हुई सगाई, बरात का प्रस्थान, बाड़े पिंजरे में बंद पशुपक्षियों को देख कर करुणा, अविवाहित ही लौट कर ग्राहंती दीक्षा का ग्रहण, राजोमतो को शोकमग्नता तथा नेमिनाथ के पथ का अनुसरण करके साध्वीदीक्षाग्रहण आदि का वर्णन है, जो कि तीर्थकर अरिष्टनेमि और महासती राजीमती से सम्बन्धित होने के कारण प्रासंगिक है। __अरिष्टनेमि की पूर्वकथा इस प्रकार है-ब्रजमण्डल के सोरियपुर (शौर्यपुर) के राजा समुद्रविजय थे / उनकी रानी का नाम शिवादेवी था। उनके चार पुत्र थे-अरिष्टनेमि, रथनेमि, सत्यनेमि और दढनेमि / वसदेव समद्रविजय के सबसे छोटे भाई थे। उनकी दो रानियाँ थींरोहिणी और देवकी। रोहिणी का पुत्र ‘बलराम' और देवकी का पुत्र था—केशव / उस समय मथुरा नगरी में वसुदेव के पुत्र कृष्ण ने जरासन्ध की पुत्री जीवयशा के पति 'कंस' को मार दिया था। इससे ऋद्ध होकर जरासन्ध यदवंशियों को नष्ट करने पर उतारू हो रहा था। जरासन्ध के आक्रमण के कारण सभी यादववंशीय ब्रजमण्डल छोड़कर पश्चिम समुद्र के तट पर आए / वहाँ द्वारकानगरी का निर्माण कर विशाल साम्राज्य की नींव डाली / इस राज्य के नेता श्रीकृष्ण वासुदेव हए। श्री कृष्ण ने समस्त यादवों की सहायता से प्रतिवासुदेव जरासन्ध को मार कर भरतक्षेत्र के तीनों खण्डों पर अपना आधिपत्य कर लिया। ___अरिष्टनेमि प्रतिभासम्पन्न, बलिष्ठ एवं तेजस्वी युवक थे; किन्तु सांसारिक भोगवासना से विरक्त थे। एक बार समुद्रविजय ने श्रीकृष्ण से कहा--'वत्स ! ऐसा कोई उपाय करो, जिससे अरिष्टनेमि विवाह कर ले / ' श्रीकृष्ण ने वसन्तमहोत्सव के अवसर पर सत्यभामा, रुक्मणी आदि को इस विषय में प्रयत्न करने के लिए कहा। श्रीकृष्ण ने भी उनसे अनुरोध किया तो भी वे मौन रहे / 'मौनं सम्मतिलक्षणम्', इस न्याय के अनुसार विवाह की स्वीकृति मानकर श्रीकृष्ण ने भोजकल के राजन्य उग्रसेन की पत्री राजीमती को अरिष्टनेमि के योग्य समझ कर विवाह की बातचीत की। उग्रसेन ने इसे अनुग्रह मान कर स्वीकार कर लिया। दोनों ओर विवाह की तैयारियाँ होने लगीं। अरिष्टनेमि को दूल्हा बना कर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित किया गया / श्रीकृष्ण बहुत बड़ी बरात के साथ श्रीअरिष्टनेमि को लेकर राजा उग्रसेन की राजधानी में विवाहमण्डप के निकट पहुँचे / इसी समय अरिष्टनेमि ने बाडों और पिंजरों में अवरुद्ध पशुपक्षियों का आर्तनाद सुना। सारथि से पूछा तो उसने कहा-'अापके विवाह के उपलक्ष्य में भोज दिया जाएगा, उसी के लिए ये पशुपक्षी यहाँ बंद किए गए हैं।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org