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________________ अठारहवां अध्ययन : संजयीय [ 299 विषय में पूछा तो उसने कहा-तुम्हारा पूर्वभव का पति जितशत्रु, देवलोक से च्यव कर दृढ़सिंह राजा के यहाँ सिंहरथ नामक पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ है / वही तुम्हारा इस जन्म में भी पति होगा। तदनुसार कनकमाला का विवाह सिंहरथ के साथ सम्पन्न हुआ। सिंहरथ को बार-बार अपने नगर जाना और वापस इस पर्वत पर पाना होता था, इस कारण वह 'नगगति' नाम से प्रसिद्ध हो गया। उक्त व्यन्तरदेव (कनकमाला का पिता) विदा लेकर उक्त पर्वत से चला गया, तब सिंहरथ राजा ने कनकमाला को अपने पिता के वियोग का दुःखानुभव न हो, इस विचार से वहीं एक नया नगर बसाया / एक बार राजा कार्तिकी पूर्णिमा के दिन नगर से बाहर चतुर्विध सैन्यसहित गए / वहीं वन में एक स्थान पर पड़ाव डाला। राजा ने वहाँ एक पाम्रवृक्ष देखा जो नये पत्तों और मंजरियों से सुशोभित एवं गोलाकार प्रतीत हो रहा था। राजा ने मंगलार्थ उस वक्ष को एक मंजरी तोड़ ली। इसे देख कर समस्त सैनिकों ने उस वृक्ष की मंजरी व पत्ते आदि तोड़ कर उसे ठंठ-सा बना दिया। राजा जब वन में घूम कर वापस लौटा तो वहाँ हराभरा आम्रवृक्ष न देख कर पूछा-'मंत्रिप्रवर ! यहाँ जो आम का वृक्ष था, वह कहाँ गया ?' मंत्री ने कहा -'महाराज! इस समय यहाँ जो ठूठ के रूप में मौजूद है, यही वह आम्रवृक्ष है।' सारा वृत्तान्त सुन कर पहले के श्रीसम्पन्न पाम्रवृक्ष को अब श्रीरहित देख कर संसार की प्रत्येक श्रीसम्पन्न वस्तु पर विचार करते-करते नग्गति राजा को संसार से विरक्ति हो गई। उन्होंने प्रत्येकबुद्ध रूप से दीक्षा ग्रहण की। मुनि बन कर तप-संयम का पालन करते हुए समाधिमरणपूर्वक शरीरत्याग करके अन्त में सिद्धिगति पाई। नमि राजर्षि भी प्रत्येकबुद्ध थे, जिनकी कथा | वें अध्ययन में अंकित है। इस प्रकार ये चारों ही प्रत्येकबुद्ध महाशुक्र नामक 7 वे देवलोक में 17 सागर की उत्कृष्ट स्थिति वाले देव हुए। वहाँ से च्यव कर एक समय में ही मुनिदीक्षा ली और एक ही साथ मोक्ष में गए / ' सौवीर-नृप उदायन राजा 48. सोवीररायवसभो चिच्चा रज्जं मुणो चरे / उद्दायणो पन्वइओ पत्तो गइमणुत्तरं // 48] सौवीरदेश के श्रेष्ठ राजा उदायन राज्य का परित्याग करके प्रबजित हुए / मुनिधर्म का आचरण किया और अनुत्तरगति प्राप्त की। विवेचन-उदायन राजा को विरक्ति, प्रवज्या और मुक्ति-सिन्धु-सौवीर आदि सोलह देशों का और वीतभयपत्तन आदि 363 नगरों का पालक राजा उदायन धैर्य, गाम्भीर्य और औदार्य आदि गुण गुणों से अलंकृत था। उसकी पटरानी का नाम प्रभावती था, जो चेटक राजा की पुत्री और जैनधर्मानुरागिणी थी। प्रभावती ने अभिजिन नामक एक पुत्र को जन्म दिया / यह वही उदायन राजा था, जिसने स्वर्णगुटिका दासी का अपहरण करके ले जाने वाले अपराधी चण्डप्रद्योतन के साथ सांवत्सरिक क्षमायाचना करके उसे बन्धनमुक्त कर देने की उदारता बताई थी। 1. उत्तराध्ययनसूत्र, प्रियदशिनीटीका, भा. 3, पृ. 310 से 396 (संक्षिप्त) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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