________________ 294] [उत्तराध्ययनसून विवेचन--माणनिसूरणो--अहंकार-विनाशक / पसाहित्ता-साध कर या अधीन करके, अथवा एकच्छत्र शासन करके / मस्सिदो : मनुष्येन्द्र-चक्रवर्ती / हरिषेण चक्रवर्ती द्वारा अनुत्तरगति प्राप्ति-काम्पिल्यनगर के महाहरि राजा को 'मेरा' नाम की महारानी की कुक्षि से हरिषेण नामक पुत्र हुए। वयस्क होने पर पिता ने उन्हें राज्य सौंपा / राज्यपालन करते-करते उन्हें चक्रवर्तीपद प्राप्त हुआ। परन्तु लघुकर्मी हरिषेणचक्री को संसार से विरक्ति हो गई / उन्होंने अपने पुत्र को राजगद्दी पर बिठाया और स्वयं ने महान् ऋद्धि त्याग कर मुरुचरणों में दीक्षा ले ली। उग्रतप से क्रमशः चार घातिकर्मों का क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त किया और अन्त में मोक्ष पहुँचे।' जय चक्रवर्ती ने मोक्ष प्राप्त किया 43. अनिओ रायसहस्सेहि सुपरिच्चाई दमं चरे / जयनामो जिणक्खायं पत्तो गइमणुतरं / / [43] हजार राजाओं सहित श्रेष्ठ त्यागी 'जय' चक्रवर्ती ने राज्य आदि का परित्याग कर जिनोक्त संयम का आचरण किया और (अन्त में) अनुत्तरगति प्राप्त की। विवेचन-जय चक्रवर्ती को संक्षिप्त जीवनगाथा--राजगृहनगर के राजा समुद्रविजय की वप्रा नाम की रानी थी। उनके जय नामक एक पुत्र था। उसने क्रमशः युवावस्था में पदार्पण किया / पिता के राज्य को बागडौर अपने हाथ में ली, फिर कुछ काल बाद चक्रवर्ती पद प्राप्त हुआ और दीर्घकाल तक चक्रवर्ती की ऋद्धि-सिद्धि भोगी। वैराग्य हो गया / जयचक्री ने अपने पुत्र को राज्य सौंप कर चारित्र अंगीकार किया। फिर तपश्चरण रूप वायु से कर्मरूपी बादलों का नाश किया / श्री जय चक्रवर्ती कुल साढ़े तीन हजार वर्ष का प्रायुष्य पूर्ण कर मोक्ष में गए।' दशार्णभद्र राजा का निष्क्रमण 44. दसण्णरज्जं मुइयं चइत्ताण मुणी चरे। दसण्णभद्दो निक्खन्तो सक्खं सक्केण चोइओ॥ [44] साक्षात् शक्रेन्द्र से प्रेरित होकर दशार्णभद्र राजा ने अपने प्रमुदित (समस्त उपद्रवों से रहित) दशाणदेश के राज्य को छोड़ कर अभिनिष्क्रमण किया और मुनि होकर विचरण करने लगे। विवेचन-देवेन्द्र से प्रेरित दशार्णभद्र राजा मुनि बने---भारतवर्ष के दशार्णपुर का राजा दशार्णभद्र था। वह जिनोक्त धर्म में अनुरक्त था / एक बार नगर के बाहर उद्यान में तीर्थकर भगवान् महावीर का पदार्पण हुआ, सुन कर दशार्णभद्र राजा के मन में विचार हुआ—आज तक भगवान् 1. उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर), भा. 2, पत्र 74 2. उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर, भावनगर) भा. 2, पत्र 75 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org