________________ सोलसमं अज्झयणं : सोलहवाँ अध्ययन बंभचेरसमाहिठाणं : ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान दस ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान और उनके अभ्यास का निर्देश 1. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु थेरेहि भगवन्तेहि दस बम्भचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा, निसम्म, संजमबहुले, संवरबहुले, समाहिबहुले, गुत्ते, गुत्तिन्दिए, गुत्तबम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा / [1] आयुष्मन् ! मैंने सुना है कि उन भगवान् ने ऐसा कहा है- स्थविर भगवन्तों ने निर्ग्रन्थप्रवचन में (या इस क्षेत्र में) दस ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान बतलाए हैं, जिन्हें सुन कर, जिनको अर्थरूप से निश्चित करके, भिक्षु संयम, संवर (आश्रवद्वारों का निरोध) तथा समाधि (चित्त की स्वस्थता) से उत्तरोत्तर अधिकाधिक अभ्यस्त हो; मन-वचन-काय-गुप्तियों से गुप्त रहे, इन्द्रियों को उनके विषयों में प्रवृत्त होने से बचाए, ब्रह्मचर्य को गुप्तियों के माध्यम से सुरक्षित रखे और सदा अप्रमत्त हो कर विहार करे / 2. कयरे खलु ते थेरेहि भगवन्तेहि दस बम्मचेरसमाहिठाणा पन्नता, जे भिक्खू सोच्चा, निसम्म, संजमबहुले, संवरबहुले, समाहिबहुले, गुत्ते, गुत्तिन्दिए, गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा ? [2] स्थविर भगवन्तों ने ब्रह्मचर्यसमाधि के वे कौन-से दस स्थान बतलाए हैं, जिन्हें सुन जनका अर्थतः निश्चय करके, भिक्षुसंयम, संवर तथा समाधि से उत्तरोत्तर अधिकाधिक अभ्यस्त हो, मन-वचन-काया की गुप्तियों से गुप्त रहे, इन्द्रियों को उनके विषयों में प्रवृत्त होने से बचाए, ब्रह्मचर्य को गुप्तियों के माध्यम से सुरक्षित रखे और सदा अप्रमत्त हो कर विहार करे ? प्रथम ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान 3. इमे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहि दस बंभचेरसमाहिठाणा पनत्ता, जे भिक्खू सोच्चा, निसम्म, संजमबहुले, संवरबहुले, समाहिबहुले, गुत्ते, गुत्तिन्दिए, गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा / तं जहा विवित्ताई सयणासणाई सेविज्जा, से निग्गन्थे / नो-इत्थी-पसुपण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवइ, से निग्गन्थे। तं कहमिति चे? आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु इत्थोपसुपण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवमाणस्स बम्भयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायक हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा नो इत्थि-पसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवइ, से निग्गन्थे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org