________________ 246] [उत्तराध्ययनसूत्र के परिग्रहों से मुक्त होता है, जो अल्प (मन्द) कषायी है, जो तुच्छ (नीरस) और वह भी अल्प आहार करता है और जो गृहवास छोड़कर अकेला (राग-द्वेषरहित होकर) विचरता है, वह भिक्षु है। --ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन-मोणं : दो अर्थ-(१) मौन--वचनगुप्ति, (2) जो त्रिकालावस्थित जगत् को जानता है या उस पर मनन करता है, वह मुनि है, मुनि का भाव या कर्म मौन है। यहाँ प्रसंगवश मौन का अर्थ-समग्र श्रमणत्व या मुनिभाव (धर्म) है।' सहिए : सहित : दो रूप : तीन अर्थ-(१) सहित-सम्यग्दर्शन आदि (ज्ञान, चारित्र एवं तप) से युक्त, सम्यग्ज्ञानक्रिया से युक्त, (2) सहित---दूसरे साधुओं के साथ, (3) स्वहितस्वहित-(सदनुष्ठानरूप) से युक्त, अथवा स्व-प्रात्मा का हितचिन्तक / ___ सहित शब्द से एकाकोविहारनिषेध प्रतिफलित-प्राचार्य नेमिचन्द्र ‘सहित' शब्द का अर्थ'अन्य साधुनों के साथ रहना' बताकर एकाकी विहार में निम्नोक्त दोष बताते हैं-(१) स्त्रीप्रसंग की सम्भावना, (2) कुत्ते आदि का भय, (3) विरोधियों-विद्वेषियों का भय, (4) भिक्षाविशुद्धि नहीं रहती, (5) महाव्रतपालन में जागरूकता नहीं रहती / / नियाणछिन्ने निदानछिन्न : तीन अर्थ--(१) निदान–विषयसुखासक्तिमूलक संकल्प अथवा (2) निदान–बन्धन-प्राणातिपातादि कर्मबन्ध का कारण / जिसका निदान छिन्न हो चुका है। अथवा (3) छिन्ननिदान का अर्थ---अप्रमत्तसंयत है / उज्जुकडे- ऋजुकृत : दो अर्थ-(१) ऋजु-संयम, जिसने ऋजुप्रधान अनुष्ठान किया है, (2) ऋजु-जिसने माया का त्याग करके सरलतापूर्वक धर्मानुष्ठान किया है / संथवं जहिज्ज-संस्तव अर्थात्--परिचय को जो छोड़ देता है, पूर्वपरिचित माता-पिता आदि, पश्चात्परिचित सास ससुर आदि के संस्तव का जो त्याग करता है / अकामकामे--अकामकाम: दो अर्थ-(१) इच्छाकाम और मदनकामरूप कामों की जो कामना-अभिलाषा नहीं करता, वह, (2) अकाम अर्थात्-मोक्ष, क्योंकि मोक्ष में मनुष्य सकल कामोंअभिलाषाओं से निवृत्त हो जाता है / उस अकाम-मोक्ष की जो कामना करता है, वह / 1. (क) उत्तरा. चूणि, पृ. 234 : मन्यते त्रिकालावस्थितं जगदिति मुनिः, मुनिभावो मौनम् / (ख) 'मुनेः कर्म मौनं, तच्च सम्यक्चारित्रम् ।'--बृहृवृत्ति, पत्र 414 (ग) 'मौनं श्रामण्यम्' –सुखबोधा, पत्र 214 2. (क) 'सहितः ज्ञानदर्शनचारित्रतपोभिः। -- चूणि, पृ. 234, (ख) सहितः सम्यग्दर्शनादिभिः साधभिर्वा। ----बृहदवत्ति, पत्र 414 (ग) वही, पत्र 414 : स्वस्मै हितः स्वहितो वा सदनूष्ठानकरणतः / (घ) सहितः सम्यग्ज्ञानक्रियाभ्याम् / -बृ. वृत्ति, पत्र 416 (ङ) वही, पत्र 416 : सहहितेन प्रायतिपथ्येन, अर्थादनुष्ठानेन वर्तते इति सहितः / 3. एगामियस्स दोसा, इत्थि साणे तहेव पडिणीए / भिक्खविसोहि-महन्वय, तम्हा सेविज्ज दोगमणं // ---सुखबोधा, पत्र 214 4. बृहद वृत्ति, पत्र 414 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org