________________ 172] [उत्तराध्ययनसूत्र अकलेवरसेणि अकलेवरणि-कलेवर का अर्थ है शरीर / मुक्त श्रात्मा अशरीरी होते हैं / उनकी श्रेणी की तरह कर्मों का सर्वथा क्षय करने वाली विचारश्रेणी–क्षपकश्रेणी कहलाती है।' 37. बुद्धस्स निसम्म भासियं सुकहियमठ्ठपओवसोहियं / रागं दोसं च छिन्दिया सिद्धिगई गए गोयमे / / --त्ति बेमि। [37] अर्थ और पदों (शब्दों) से सुशोभित एवं सुकथित बुद्ध (केवलज्ञानी भगवान महावीर) की वाणी सुनकर राग-द्वेष को विच्छिन्न कर श्री गौतमस्वामी सिद्धिगति को प्राप्त हुए। -ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन-अठ्ठपोवसोहियं-दो अर्थ--(१) अर्थप्रधान पद---अर्थपद / (2) न्यायशास्त्रानुसार मोक्षशास्त्र के चतुव्यूह (हेय-दुःख तथा दुःखनिर्वतक, आत्यन्तिकहान-दुःखनिवृत्ति-मोक्षकारण, उपाय-शास्त्र, और अधिगन्तव्य-लभ्य मोक्ष) को अर्थपद कहा गया है।' ॥द्रमपत्रक :दशम अध्ययन समाप्त // 1. बृहद्वृत्ति, पत्र 341 2. (क) बृहवृत्ति, पत्र 341 (ख) न्यायभाष्य 111 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org