________________ नवम अध्ययन : अध्ययन-सार] [137 चाहे अप्राप्त, दोनों की अभिलाषा दुर्गति में ले जाने वाली है, अतः कामभोगों की इच्छाएँ तथा तज्जनित कषायों का त्याग करना ही मुमुक्षु के लिए हितकर है। नमि राजर्षि के उत्तर सुन कर देवेन्द्र अत्यन्त प्रभावित होकर परम श्रद्धाभक्तिवश स्तुति, प्रशंसा एवं वन्दना करके अपने स्थान को लौट जाता है।' 1. (क) उत्तरा. मूलपाठ, प्र. 9, गा. ७से 60 तक (ख) उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका, भा. 2, पृ. 361 से 364 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org