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________________ 122] [उत्तराध्ययनसूत्र 'इड्ढी ....."सुहं च' के अर्थ-ऋद्धि---स्वर्णादि, धुति-शरीरकांति, यश-पराक्रम से होने वाली प्रसिद्धि, वर्ण-गाम्भीर्य श्रादि गुणों के कारण होने वाली प्रशंसा, सुख-यथेष्ट विषय की प्राप्ति होने से हुआ ग्राह्लाद / ' बाल और पण्डित का दर्शन तथा पण्डितभाव स्वीकार करने की प्रेरणा 28. बालस्स पस्स बालतं अहम्मं पडिवज्जिया। चिच्चा धम्मं अहम्मिठे नरए उववज्जई // [28] बाल जीव के बालत्व (अज्ञानता) को तो देखो! वह अधर्म को स्वीकार कर एवं धर्म का त्याग करके अमिष्ठ बन कर नरक में उत्पन्न होता है। 29. धीरस्स पस्स धोरत्तं सव्वधम्माणुवत्तिणो / चिच्चा अधम्मं धम्मिठे देवेसु उववज्जई // [26] समस्त धर्मों का अनुवर्तन-पालन करने वाले धीरपुरुष के धैर्य को देखो। वह अधर्म का त्याग करके धर्मिष्ठ बन कर देवों में उत्पन्न होता है। 30. तुलियाण बालभावं अबालं चेव पण्डिए / - चइऊण बालभावं अबालं सेवए मुणी // ---त्ति बेमि / ___ [30] पण्डित (विवेकशील) साधक बालभाव और अबाल (-पण्डित) भाव की तुलना (-गुण-दोष की सम्यक् समीक्षा) करके बालभाव को छोड़ कर अबालभाव को अपनाता है। -ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन-अहम्म-धर्म के विपक्ष विषयासाक्तिरूप अधर्म को, धम्म--विषयनिवृत्तिरूप सदाचार धर्म को। धीरस्स-बुद्धि से सुशोभित, धैर्यवान्, अथवा परीषहों से अक्षुब्ध / सव्वधम्माणुवत्तिणो--क्षमा, मार्दव आदि सभी धर्मों के अनुरूप आचरण करने वाला। ॥सप्तम अध्ययन समाप्त // (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र 283 1. (क) सुखबोधा, पत्र 123 2. बृहद्वृत्ति, पत्र 283 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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