________________ षष्ठ अध्ययन : क्षुल्लक निग्रंन्यीय] [109 णायपुत्ते-ज्ञातपुत्र : तीन अर्थ--(१) ज्ञात-उदार क्षत्रिय का पुत्र, (2) ज्ञातवंशीय-क्षत्रियपुत्र, (3) ज्ञात-प्रसिद्ध सिद्धार्थ क्षत्रिय का पुत्र / ' बेसालिए-पांच रूप : छह अर्थ -(1) वैशालीय-जिसके विशाल गुण हों, (2) वैशालियविशाल इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न, (3) वैशालिक-जिसके शिष्य, तीर्थ (शासन) तथा यश आदि गुण विशाल हों, अथवा वैशाली जिसकी माता हो वह, (4) विशालीय-विशाला–त्रिशला का पुत्र / (5) विशालिक—जिसका प्रवचन विशाल हो / क निर्ग्रन्थीय: षष्ठ अध्ययन समाप्त // 1. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र 270 (ख) उत्तरा. चूणि पृ. 156 (ग) सुखबोधा, पत्र 115 (घ) उत्तरा. टीका, अ. रा. कोष 33752 चणि, १५६-१५७-वैशाली जननी यस्य, विशालं कूलमेव च / विशाल वचनं चास्य तेन वैशालिको जिनः / / (ख) उत्तरा. टीका., अ. रा. कोष 3752 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org