________________ ही परिश्रमसाध्य कार्य है। वीतराग की वाणी के गम्भीर रहस्य को समझ कर उसे भाषा में उतारना और भी टेढ़ी खीर है, पर मेरा परम सौभाग्य है कि पागम-साहित्य के गम्भीर ज्ञाता, परमश्रद्धय, सद्गुरुवर्य, उपाध्याय श्री पुष्करमुनि जी म. सा० तथा साहित्यमनीषी पूज्य गुरुदेव श्री देवेन्द्र मुनिजी शास्त्री का सतत मार्गदर्शन मेरे पथ को पालोकित करता रहा है। उन्हीं की असीम कृपा से इस महान कार्य को करने में मैं सक्षम हो सका हूँ। गुरुदेवश्री ने इस भगीरथ कार्य को सम्पन्न करने में जो श्रम किया वह शब्दातीत है। मेरे अनुवाद और सम्पादन को देखकर स्नेहमूर्ति श्रीचन्द सुराणा 'सरस' ने मुक्तकंठ से सराहना की, जिससे मुझे कार्य करने में अधिक उत्साह उत्पन्न हुआ और मैं गुरुजनों के पाशीर्वाद से यह कार्य शीघ्र सम्पन्न कर सका। ___ सम्पादन करते समय मैंने अनेक प्रतियों का उपयोग किया है / नियुक्ति, भाष्य, चूणि और वृत्तियों का भी यथास्थान उपयोग किया है / वृत्ति-साहित्य में अनेक कथाएँ पाई हैं, जो विषय को परिपुष्ट करती हैं। चाहते हए भी ग्रन्थ की काया अधिक बड़ी न हो जाय, इसलिए मैंने इसमें वे कथाएँ नहीं दी हैं। ज्ञात व अज्ञात रूप में जिस किसी का भी सहयोग मिला है--उसके प्रति आभार व्यक्त करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ। यहाँ पर मैं परमादरणीया, पूज्य मातेश्वरी महासती श्री प्रकाशवतीजी को भी विस्मृत नहीं कर सकता, जिनके कारण ही मैं संयम-साधना के पथ पर अग्रसर हुअा हूँ तथा परम श्रद्ध या सदगुरुणी जी, प्रज्ञामूर्ति पुष्पवती जी को भी भूल नहीं सकता, जिनके पथ-प्रदर्शन ने मेरे जीवन को विचारों के पालोक से अापूरित किया है तथा ज्येष्ठ भ्राता श्री रमेशमुनि जी का हार्दिक स्नेह भी मेरे लिए सम्बल रूप रहा है / दिनेशमुनिजी व नरेश मुनिजी को भी विस्मृत नहीं कर सकता, जिनकी सद्भावना सतत मेरे साथ रही है तथा नानीजी स्वर्गीय प्रभावतीजी म. का भी मेरे पर महान उपकार रहा है। महासती नानकूवरजी म०, महासती हेमवतीजी का स्नेहपूर्ण प्राशीर्वाद भी मेरे लिए मार्गदर्शक रहा है। ज्ञात व अज्ञात रूप में जिन किन्ही का भी सहयोग मुझे मिला है, मैं उन सभी का हादिक आभारी हूँ। प्राशा है कि मेरा यह प्रयास पाठकों को पसन्द आयेगा। मूर्धन्य मनीषियों से मेरा साग्रह निवेदन है कि वे अपने अनमोल सुझाव हितबुद्धि से मुझे प्रदान करें, ताकि अगले संस्करण को और अधिक परिष्कृत किया जा सके। -राजेन्द्रमुनि शास्त्री जैन स्थानक चांदावतों का नोखा दि. 2 फरवरी, 1983 [18] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org