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________________ प्रथम अध्ययन : विनय पूत्र] [ 15 [16.] संयमी मुनि गुरुजनों के समीप पालथी लगा कर न वैठे, पक्षपिण्ड करके अथवा दोनों . पैरों (टांगों) को पार कर न बैठे। 20. आयरिएहि वाहिन्तो, तुसिणीओ न कयाइ वि / पसाय-पेही नियागट्ठी, उवचिठे गुरु सया // [20.] गुरु के प्रसाद (-कृपाभाव) को चाहने वाला मोक्षार्थी शिष्य, आचार्यों के द्वारा बुलाए जाने पर कदापि (किसी भी स्थिति में) मौन न रहे, किन्तु निरन्तर गुरु के समीप (सेवा में) उपस्थित 21. पालवन्ते लवन्ते वा, न निसीएज्ज कयाइ वि / चइऊणमासणं धीरो, जओ जत्तं पडिस्सुणे // [21.] गुरु के द्वारा एक बार अथवा अनेक बार बुलाए जाने पर धीर (बुद्धिमान्) शिष्य कदापि बैठा न रहे, किन्तु आसन छोड़कर (उनके आदेश को) यत्नपूर्वक (सावधानी से) स्वीकार करे। 22. आसण-गओ न पुच्छेज्जा, नेव सेज्जा-गओ कया। आगम्मुक्कुडुओ सन्तो, पुच्छेज्जा पंजलीउडो॥ [22.] आसन अथवा शय्या पर बैठा-बैठा कोई बात गुरु से न पूछे, किन्तु उनके समीप पा कर, उकड़ पासन से बैठ कर और हाथ जोड़ कर (जो भी पूछना हो,) पूछे / विवेचन-आशातना के कारण---(१) प्राचार्यों के प्रतिकल पाचरण मन-वचन-काय से करने भे, (2) उनके समीप सट कर बैठने से, (3) उनके आगे या पीछे सट कर या पीठ देकर बैठने से. (4) जांघ से जांघ सटा कर बैठने से, 5) शय्या पर बैठे-बैठे ही उनके आदेश को स्वीकार करने से, (5) पालथी लगा कर बैठने से, (6) दोनों हाथों से शरीर को बांध कर बैठने से, (7) दोनों टांगे पसार कर बैठने से, (8) उनके द्वारा बुलाने पर चुप रहने पर, (8) एक या अनेक बार बुलाये जाने पर भी बैठे रहने से, (10) अपना आसन छोड़कर उनके आदेश को यत्नपूर्वक स्वीकार न करने से, (11) आसन पर बैठे-बैठे ही कोई बात गुरु से पूछने से और प्रश्न पूछते समय गुरु के निकट न आकर उकड़ पासन से न बैठ कर तथा हाथ न जोड़ने से / ये और ऐसी ही कई बातें गुरुजनों की अाशातना की कारण हैं / अनाशातनाविनय के लिए इन्हें छोड़ना अनिवार्य है।' वाया अदुव कम्मुणा वाणी से प्रतिकूल व्यवहार-तुम क्या जानते हो? तुझे कुछ प्राताजाता तो है नहीं ! कर्म से प्रतिकूल आचरण-गुरु के पैर लगाना, ठोकर मारना, उनके उपकरणों को फेंक देना या पैर लगाना आदि / 2 प्रावि वा जइ वा रहस्से-आवि-जनसमक्ष प्रकट में, रहस्से-विविक्त उपाश्रयादि में, एकान्त में या अकेले में / . . 1. उत्तराध्ययनसूत्र, मूल अ. 1, गा. 17 से 22 तक 2. बृहद्वत्ति, पत्र 54 3. वही, पत्र 54 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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