________________ प्रथम अध्ययन : अध्ययन-सार] [5 (अनाशातना और शुश्रूषविनय) के सन्दर्भ में तथा शेष गाथाएँ चारित्रविनय (समाचारी पालन, भिक्षाग्रहण-आहार-सेवनविवेक, अनुशासनविनय आदि) के सन्दर्भ में प्रतिपादित हैं।" * प्रस्तुत अध्ययन में विनयी और अविनयी के स्वभाव, व्यवहार और आचरण का सांगोपांग वर्णन है। * अध्ययन के उपसंहार में 45 से 48 वी गाथा तक विनीत शिष्य की उपलब्धियों का विनय की फलश्रुति के रूप में वर्णन किया गया है। कुल मिला कर मोक्षविनय का सांगोपांग वर्णन किया गया है। -औषपातिक... 1. 'से कि तं लोगोबयारविणए ? सत्तविहेप. तं. .... / ' 2. उत्तराध्ययन मूल अ. 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org