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________________ प्रस्तुत चणि में अनेक कथाएँ दी गई हैं, जो बहुत ही रोचक तथा विषय को स्पष्ट करने वाली हैं। उदाहरण के रूप में हम यहाँ एक-दो कथाएँ दे रहे हैं प्रवचन का उड्डाह होने पर किस प्रकार प्रवचन की रक्षा की जाए? इसे समझाने के लिए हिंगुशिव नामक वानव्यन्तर की कथा है। एक माली पुष्पों को लेकर जा रहा था। उसी समय उसे शौच की हाजत हो गई / उसने रास्ते में ही शौच कर उस अशुचि पर पुष्प डाल दिए। राहगीरों ने पूछा-यहाँ पर पुष्प क्यों डाल रखे हैं ? उत्तर में माली ने कहा—मुझे प्रेतबाधा हो गई थी। यह हिंगुशिव नामक वानव्यन्तर है। इसी प्रकार यदि कभी प्रमादवश प्रवचन की हँसी का प्रसंग उपस्थित हो जाय तो उसकी बुद्धिमानी से रक्षा करें। एक लोककथा बुद्धि के चमत्कार को उजागर कर रही है.. एक व्यक्ति ककड़ियों से गाड़ी भरकर नगर में बेचने के लिए जा रहा था। उसे मार्ग में एक धूर्त मिला, उसने कहा—मैं तुम्हारी ये गाड़ी भर ककड़ियां खा ल तो मुझे क्या पुरस्कार दोगे ? ककड़ी वाले ने कहा—-मैं तुम्हें इतना बड़ा लड्ड दुगा जो नगरद्वार में से निकल न सके / धूर्त ने बहुत सारे गवाह बुला लिए और उसने थोड़ी-थोड़ी सभी ककड़ियां खाकर पुन: गाड़ी में रख दी और लगा लड़ड मांगने / ककड़ी वाले ने कहा—शर्त के अनुसार तुमने ककड़ियां खाई ही कहाँ हैं ? धूर्त ने कहा यदि ऐसी बात है तो ककड़ियां बेचकर देखो। ककड़ियों की गाड़ी को देखकर बहुत सारे व्यक्ति ककड़ियां खरीदने को आ गये। पर ककड़ियों को देख कर उन्होंने कहा-खाई हुई ककड़ियां बेचने के लिए क्यों लेकर पाए हो? अन्त में धूर्त और ककड़ी वाला दोनों न्याय कराने हेतु न्यायाधीश के पास पहुंचे। ककड़ी वाला हार गया और धूर्त जीत गया / उसने पुनः लड्ड मांगा। ककड़ी वाले ने उसे लड्डु के बदले में बहुत सारा पुरस्कार देना चाहा पर वह लड्डू लेने के लिए ही अड़ा रहा। नगर के द्वार से बड़ा लड्डू बनाना कोई हंसी-खेल नहीं था / ककड़ी वाले को परेशान देख कर एक दूसरे धुर्त ने उसे एकान्त में ले जाकर उपाय बताया कि एक नन्हा सा लड्ड बनाकर उसे नगर द्वार पर रख देना और कहना—'लड्डु ! दरवाजे से बाहर निकल आयो।' पर लड्ड निकलेगा नहीं, फिर तुम वह लड्ड उसे यह कहकर दे देना कि यह लड्ड द्वार में से नहीं निकल रहा है। ___ इस प्रकार अनेक कथाएं प्रस्तुत चूणि में विषय को स्पष्ट करने के लिए दी गई हैं। टोकाएं चणि साहित्य के पश्चात् संस्कृतभाषा में टीकानों का निर्माण हुआ। टीकायुग जैन साहित्य के इतिहास में स्वर्णिम युग के रूप में विश्रुत है। नियुक्तिसाहित्य में आगमों के शब्दों की व्याख्या और व्युत्पत्ति है। भाष्यसाहित्य में पागमों के गम्भीर भावों का विवेचन है। चणिसाहित्य में निगढ़ भावों को लोककथानों तथा ऐतिहासिक बत्तों के आधार से समझाने का प्रयास है तो टीकासाहित्य में आगमों का दार्शनिक दृष्टि से विश्लेषण है / टीकाकारों ने प्राचीन नियुक्ति, भाष्य और चणि साहित्य का अपनी टीकात्रों में प्रयोग किया ही है और साथ ही नये हेतुओं का भी उपयोग किया है। टीकाएँ संक्षिप्त और विस्तृत दोनों प्रकार की हैं। टीकात्रों के [72 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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