________________ कथा के अर्थ, काम, धर्म और मिश्र ये चार भेद किए गए हैं और उनके प्रवान्तर भेद भी किए गए हैं। श्रमण क्षेत्र, काल, पुरुष, सामर्थ्य प्रभति को लक्ष्य में रखकर ही अनवद्य कथा करें / 233 चतुर्थ अध्ययन में षटजीवनिकाय का निरूपण है। इसमें एक, छह, जीव, निकाय और शास्त्र का निक्षेपदृष्टि से चिन्तन किया गया है। जीव के लक्षणों का प्रतिपादन करते हुए बताया है—ादान, परिभोग, योग, उपयोग, कषाय, लेश्या, प्रांख, पापान, इन्द्रिय, बन्ध, उदय, निर्जरा, चित्त, चेतना, संज्ञा, विज्ञान, धारणा, बुद्धि ईहा, मति, वितर्क से जीव को पहचान सकते हैं। 234 शस्त्र के द्रव्य और भाव रूप से दो प्रकार बताए हैं। द्रव्यशस्त्र स्वकाय, परकाय और उभय कायरूप होता है तथा भावशस्त्र असंयम रूप होता है। 235 पंचम अध्ययन भिक्षा-विशुद्धि से सम्बन्धित है। पिण्डैषणा में पिण्ड तथा एषणा—ये दो पद हैं, इन पर निक्षेपपूर्वक चिन्तन किया गया है। गुड़, प्रोदन प्रादि द्रव्यपिण्ड हैं और क्रोध, मान, माया, लोभ, ये भावपिण्ड हैं। द्रव्यपणा सचित्त, अचित्त और मिश्र के रूप से तीन प्रकार की है। भावैषणा प्रशस्त और अप्रशस्त रूप से दो प्रकार की है—ज्ञान, दर्शन, चारित्र ग्रादि प्रशस्त भावैषणा है और क्रोध आदि अप्रशस्त भावेषणा है। प्रस्तुत अध्ययन में द्रव्यषणा का ही वर्णन किया गया है, क्योंकि भिक्षा-विशुद्धि से तप और संयम का पोषण होता है। 23 छठे अध्ययन में बृहद् प्राचारकथा का प्रतिपादन है। महत् का नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, प्रधान, प्रतीत्य और भाव इन पाठ भेदों से चिन्तन किया है। धान्य और रत्न के चौबीस-चौबीस प्रकार बताए सप्तम अध्ययन का नाम वाक्यशुद्धि है। वाक्य, वचन, गिरा, सरस्वती, भारती, गो, वाक्, भाषा, प्रज्ञापती, देशनी, वाग्योग, योग ये सभी एकार्थक शब्द हैं। जनपद आदि के भेद से सत्यभापा दस प्रकार की होती है। क्रोध आदि के भेद से मृषाभाषा भी दस प्रकार की होती है। उत्पन्न होने के प्रकार से मिश्रभाषा अनेक प्रकार की है और असत्यामृषा आमंत्रणी आदि के भेद से अनेक प्रकार की है। शुद्धि के भी नाम आदि चार निक्षेप है। भावशुद्धि तद्भाव, आदेशभाव और प्राधान्यभाव रूप से तीन प्रकार की हैं / 238 अष्टम अध्ययन प्राचारप्रणिधि है। प्रणिधि द्रव्यप्रणिधि और भावप्रणिधि रूप से दो प्रकार की है। निधान आदि द्रव्यप्रणिधि है। इन्द्रियप्रणिधि और नोइन्द्रियप्रणिधि ये भावप्रणिधि है, जो प्रशस्त और प्रशस्त रूप से दो प्रकार की है। 236 नवम अध्ययन का नाम विनयसमाधि है। भावविनय के लोकोपचार, अर्थनिमित्त, कामहेतु, भयनिमित्त और मोक्षनिमित्त, ये पाँच भेद किए गए हैं। मोक्ष निमित्तक विनय के दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और उपचार सम्बन्धी पाँच भेद किये गए हैं।४० 233. दशवकालिक गाथा 188-215 234. गाथा 223-224 235. गाथा 231 236. . गाथा 234-244 237. गाथा 250-262 238. गाथा 269-270; 273-276; 286 239. गाथा 293-94 240. गाथा 309-322 [68] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org