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________________ संपादन / नियुक्ति प्राकृत भाषा में पद्य-बद्ध टीकाएँ हैं, जिनमें मूल ग्रन्थ के प्रत्येक पद की व्याख्या न करके मुख्य रूप से पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या की गई है। नियुक्ति की व्याख्याशैली निक्षेप पद्धति पर प्राधत है। एक पद के जितने भी अर्थ होते हैं उन्हें बताकर जो अर्थ ग्राह्य है उसकी व्याख्या की गई है और साथ ही अप्रस्तुत का निरसन भी किया गया है। यों कह सकते हैं—सूत्र और अर्थ का निश्चित सम्बन्ध बताने वाली व्याख्या नियुक्ति है 225 / सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान् सारपेन्टियर ने लिखा है नियुक्तियां अपने प्रधान भाग के केवल इन्डेक्स का काम करती है, ये सभी विस्तारयुक्त घटनावलियों का संक्षेप में उल्लेख करती हैं। 226 डॉ. घाटके ने नियुक्तियों को तीन विभागों में विभक्त किया है-२२७ (1) मूल-नियुक्तियां-जिन नियुक्तियों पर काल का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा और उनमें अन्य कुछ भी मिश्रण नहीं हुआ, जैसे-पाचारांग और सूत्रकृतांग की नियुक्तियां / (2) जिनमें मूलभाष्यों का सम्मिश्रण हो गया है तथापि वे व्यवच्छेद्य हो, जैसे- दशवकालिक और आवश्यक सूत्र की नियुक्तियां / (3) वे नियुक्तियां, जिन्हें आजकल भाष्य या बृहद् भाष्य कहते हैं। जिनमें मूल और भाष्य का इतना अधिक सम्मिश्रण हो गया है कि उन दोनों को पृथक्-पृथक् नहीं किया जा सकता, जैसे निशीथ आदि की नियुक्तियां / प्रस्तुत विभाग वर्तमान में जो नियुक्तिसाहित्य प्राप्त है, उसके आधार पर किया गया है / जैसे यास्क महर्षि ने वैदिक पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या के लिए निघण्ट्र भाष्य रूप निरक्त लिखा, उसी प्रकार जैन पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या के लिए प्राचार्य भद्रबाह ने नियुक्तियां लिखीं / नियुक्तिकार भद्रबाहु का समय विक्रम संवत् 562 के लगभग है और नियुक्तियों का समय 500 से 600 (वि. स.) के मध्य का है। दस पागमों पर नियूक्तियां लिखी गई, उनमें एक नियुक्ति दशकालिक पर भी है ! डॉ. घाटके के अभिमतानुसार प्रोधनियुक्ति और पिण्ड-नियुक्ति क्रमश: दशवकालिकनियुक्ति और आवश्यकनिक्ति की उपश गएँ हैं। पर डॉ. धाटके की बात से सुप्रसिद्ध टीकाकार आचार्य मलयगिरि सहमत नहीं हैं। उनके मंतध्यानुसार पिण्डनियुक्ति दशवकालिकनियुक्ति का ही एक अंश है। यह बात उन्होंने पिण्डनियुक्ति की टीका में स्पष्ट की है। प्राचार्य मलयगिरि दशवकालिकनियुक्ति को चतुर्दश पूर्वधर आचार्य भद्रबाहु की कृति मानत हैं, किन्तु पिण्डषणा नामक पांचवें अध्ययन पर वह नियुक्ति बहत ही विस्तृत हो गई, जिससे पिण्डनियुक्ति को स्वतंत्र नियुक्ति के रूप में स्थान दिया गया। इससे यह स्पष्ट है कि पिण्डनियुक्ति दशावकालिक नियुक्ति का ही एक विभाग है। प्राचार्य मलयगिरि ने इस सम्बन्ध में अपना तर्क दिया है—पिण्डनियुक्ति दशवकालिकनियुक्ति के अन्र्तगत होने के कारण ही इस ग्रन्थ के ग्रादि में नमस्कार नहीं किया गया है और दशवैकालिकनियुक्ति के मूल के प्रादि में नियुक्तिकार ने नमस्कारपूर्वक ग्रन्थ को प्रारम्भ किया है / 228 225 सूत्रार्थयोः परस्परं निर्योजनं सम्बन्धनं नियुक्तिः / ---आवश्यकनियुक्ति, गा. 83 226 उत्तराध्ययन की भूमिका, पृ० 50-51 227 Indian Historical Quarterly, Vol. 12 P. 270 228. दशवकालिकस्य च नियुक्तिश्चतुर्दशपूर्वविदा भद्रवाहस्वामिना कृता, तत्र पिण्डेपणाभिधपञ्चमाध्ययन नियुक्तिरतिप्रभूतग्रन्थत्वात पृथक शास्त्रान्तरमिव व्यवस्थापिता तस्याश्च पिण्डनिए क्तिरिति नामकृतं ..."अतएव चादावत्र नमस्कारोऽपि न कृतो दशवकालिकनियुक्त्यन्तरगतत्वेन शेषा तू नियंक्तिर्दशवकालिकनियुक्तिरिति स्थापिता। [ 66 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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