SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 466
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 384] [दशवकालिकसूत्र अनिदान-निदान से रहित / जो साधक मनुष्यभव-प्राप्ति, ऋद्धि प्रादि के निमित्त तप-संयम नहीं करता अथवा जो भावी फलाशंसा से रहित होता है, वह अनिदान कहलाता है / परीसहाई परीषह -कर्मनिर्जरा (प्रात्मशुद्धि) एवं श्रमणनिर्ग्रन्थमार्ग से च्युत न होने के लिए जो अनुकूल और प्रतिकूल स्थितियां और मनोभाव सहे जाते हैं, उन्हें परीषह कहते हैं। वे क्षुधा आदि 22 हैं / जाइपहामो-दो रूप : दो अर्थ--(१) जातिपथ--संसार / जाति-बध-जाति का अर्थ है-जन्म और वध का अर्थ है-मरण / तवे रए सामणिए : भवे रए सामणिए : दो अर्थ--(१) जो श्रमणसम्बन्धी तप में रत रहता है और (2) जो श्रामण्य (श्रमणभाव या श्रमणधर्म) में रत रहता है / सद्भिक्षु : संयम, अमूर्छा, अगद्धि आदि गुणों से समृद्ध 535. हत्थसंजए पायसंजए, वायसंजए संजइंदिए। अज्झप्परए सुसमाहियप्पा, सुत्तत्थं च वियाणई जे, स भिक्खू // 15 // * 536. उवहिम्मि अमुच्छिए अगढिए,+ अण्णाय-उंछं पुलनिप्पुलाए। कय-विक्कय-सन्निहिओ विरए, सव्वसंगावगए य जे, स भिक्खू // 16 // 14. (क) जहा पुढवी अक्कुस्समाणी हम्ममाणी भक्खिज्जमाणी च न य किंचि परोसं वहइ, तहा भिक्खुणावि सवफासविसधेण होयच्वं / (ख) माणस-रिद्धिनिमित्तं तव-संजम न कव्वइ, से अणियाणे। -जिन. चणि, पृ. 345 (ग) अनिदानो--भाविफलाशंसारहितः / -हारि, वत्ति, पत्र 267 (घ) मार्गाऽच्यवन-निर्जराथ परिषोढव्याः परीषहाः। -तत्त्वार्थ. 958 (ङ) जातिग्गहणेण जम्मणस्स ......"बधगहणेण मरणस्स गहणं कयं / -अ. चू. (च) जातिपथात् -संसारमार्गात् / तपसि रतः तपसि रक्तः / किम्भूत इत्याह-श्रामण्ये-श्रमणानां सम्बधिनि शुद्ध इति भावः / हारि. वृत्ति, पत्र 2.67 (छ) 'भवे रते सामणिए-'समणभावो सामणियं, तम्मि रतो भवे / ' -अगस्त्यचूर्णि * तुलना कीजिए-. चक्खुना संवरो साधु, साधु सोतेन संवरो / घाणेन संवरो साधु, साधु जिह्वा य संवरो / / कायेन संवरो साधु. साधु वाचा य संबरो। मनसा संवरो साधु, साधु सब्बत्थ संवरो // सव्वस्थ संवुतो भिक्खू, सव्वदुक्खा पमुच्चति / --धम्मपद 2511-2 पाठान्तर--+ अगिद्ध / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy