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________________ का प्रयोग संन्यासी के लिए निषिद्ध है। प्राचार्य मनु ने लिखा है--संन्यासी जलपात्र या भिक्षापात्र मिट्टी, लकड़ी, तुम्बी या विना छिद्र वाला बांस का पात्र रख सकता है। यह सत्य है कि जैन परम्परा में जितना अहिमा का सक्ष्म विश्लेषण है उतना सक्ष्म विश्लेषण वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में नहीं हया है। वैदिक ऋषियों ने जल, अग्नि, वायु प्रादि में जीव नहीं माना है। यही कारण है जलस्नान को बहाँ अधिक महत्त्व दिया है / पंचाग्नि तपने को धर्म माना है, कन्द-मूल के आहार को ऋषियों के लिए श्रेष्ठ आहार स्वीकार किया है / तथापि हिंसा से बचने का उपदेश तो दिया ही गया है। वैदिक ऋषियों ने सत्य बोलने पर बल दिया है / अप्रिय सत्य भी वर्ण्य है। वही सत्य बोलना अधिक श्रेयस्कर है जिससे सभी प्राणियों का हित हो। इसी तरह अन्य व्रतों की तुलना महाव्रतों के साथ वैदिक परम्परा की दृष्टि से की जा सकती है। महावत और दस शील जिस प्रकार जैन परम्परा में महाव्रतों का निरूपण है, वैसा महाव्रतों के नाम से वर्णन बौद्ध परम्परा में नहीं है / विनयपिटक महावग्ग में बौद्ध भिक्षुओं के दस शील का विधान है जो महाव्रतों के साथ मिलते-जुलते हैं। वे दस शील इस प्रकार हैं- 1. प्राणातिपातविरमण, 2. अदत्तादानविरमण 3. कामेसु-मिच्छाचारविरमण, 4. भूसावाद (मृषावाद)-विरमण, 5. सुरा मेरय मद्य (मादक द्रव्य)-विरमण, 6. विकाल भोजनविरमण, 7. नत्य-गीत-बादित्रविरमण, 8, माल्य धारण, गन्ध विलेपन विरमण, 9. उच्चशय्या, महाशय्या-विरमण, 10. जातरूप-रजतग्रहण (स्वर्ण-रजतग्रहण)-विरमण / 13 महाव्रत और शील में भावों की दृष्टि से बहत कुछ समानता है। सुत्तनिपात'१४ के अनुसार भिक्षु के लिए मन-वचन-काय और कृत, कारित तथा अनुमोदित हिंसा का निषेध किया गया है। विनयपिटक 15 के विधानानुसार भिक्ष के लिए वनस्पति तोड़ना, भूमि को खोदना निषिद्ध है क्योंकि उससे हिंसा होने की संभावना है। बौद्ध परम्परा ने पृथ्वी, पानी ग्रादि में जीव की कल्पना तो की है पर भिक्षु प्रादि के लिए सचित्त जल प्रादि का निषेध नहीं है, केवल जल छानकर पीने का विधान है। जैन श्रमण की तरह बौद्ध भिक्षुक भी अपनी आवश्यकतान की पूर्ति भिक्षावृत्ति के द्वारा करता है / विनयपिटक में कहा गया है जो भिक्षु बिना दी हुई वस्तु को लेता है वह श्रमणधर्म से च्युत हो जाता है / '16 संयुक्तनिकाय में लिखा है यदि भिक्षुक फूल को सूघता है तो भी वह चोरी करता है।"" बौद्ध भिक्षुक के लिए स्त्री का स्पर्श भी वयं माना है।'१६ अानन्द ने तथागत बुद्ध से प्रश्न किया-भदन्त ! हम किस प्रकार स्त्रियों के साथ वर्ताव करें ? तथागत ने कहा- उन्हें मत देखो। आनन्द ने पुनः जिज्ञासा व्यक्त की-यदि वे दिखाई दे जाएं तो हम उनके साथ कैसा व्यवहार करें? तथागत ने कहा- उनके साथ वार्तालाप नहीं करना चाहिए। आनन्द ने कहा-भदन्त ! यदि वार्तालाप का प्रसंग उपस्थित हो जाय तो क्या करना चाहिए ? बुद्ध ने कहा—उस 112 मनुस्मृति 6153-54 113 विनयपिटक महावग्ग 1656 114 सुत्तनिपात 37 / 27 115 विनयपिटक, महावग्म 1178 / 2 116 विनयपिटक, पातिमोक्ख पराजिक धम्म, 2 117 संयुक्त निकाय 9 / 14 118 विनयपिटक, पातिभोक्ख संचादि सेस धम्म, 2 [38] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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