________________ वे ही वस्तुएं अपने पास में रखे जिनके द्वारा संयमसाधना में सहायता मिले ! श्रमणों को उन उपकरणों पर ममत्व नहीं रखना चाहिये, क्योंकि ममत्व साधना की प्रगति के लिए बाधक है। प्राचारांग१०५ के अनुसार जो पूर्ण स्वस्थ श्रमण है, वह एक वस्त्र से अधिक न रखे। श्रमणियों के लिए चार वस्त्र रखने का विधान है पर श्रमण के वस्त्रों के नाप के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है किन्तु श्रमणियों के लिए जो चार वस्त्र का उल्लेख है उनमें एक दो हाथ का, दो तीन हाथ के और एक चार हाथ का होना चाहिए। प्रश्नव्याकरणसूत्र में श्रमणों के लिए चौदह प्रकार के उपकरणों का विधान है----१. पात्र-जो कि लकड़ी, मिट्टी अथवा तुम्बी का हो सकता है, 2. पात्रबन्ध-पात्रों को बांधने का कपड़ा, 3. पात्रस्थापना-पात्र रखने का कपड़ा, 4. पात्रकेसरिका-पात्र पोछने का कपड़ा, 5. पटल—पात्र ढंकने का कपड़ा, 6. रजस्त्राण, 7. गोच्छक, 8 से 10. प्रच्छादक—प्रोढ़ने की चादर, श्रमण विभिन्न नापों की तीन चादरे रख सकता है इसलिए ये तीन उपकरण माने गये हैं, 11. रजोहरण, 12. मुखवस्त्रिका, 13. मात्रक और 14. चोलपट्ट / '06 ये चौदह प्रकार की वस्तु श्रमणों के लिए आवश्यक मानी गई हैं। बृहत्कल्पभाध्य'०७ आदि में अन्य वस्तुएं रखने का भी विधान मिलता है, पर विस्तार भय से हम यहाँ उन सब की चर्चा नहीं कर रहे हैं। अहिंसा और संयम को वद्धि के लिए ये उपकरण हैं, न कि सुख-सुविधा के लिए। पाँच महाव्रतों के साथ छठा व्रत रात्रिभोजन-परित्याग है। श्रमण सम्पर्ण रूप से रात्रिभोजन का परित्याग करता है। अहिंसा महावत के लिए व संयमसाधना के लिए रात्रिभोजन का निषेध किया गया है / सूर्य अस्त हो जाने के पश्चात् श्रमण आहार प्रादि करने की इच्छा मन में भी न करे / रात्रिभोजन-परित्याग को नित्य तप कहा है। रात्रि में आहार करने से अनेक सूक्ष्म जीवों को हिंसा की संभावना होती है। रात्रिभोजन करने वाला उन सूक्ष्म और त्रस जीवों की हिंसा से अपने आप को बचा नहीं सकता / इसलिए निर्ग्रन्थ श्रमणों के लिए रात्रिभोजन का निषेध किया गया है। महाव्रत और यम ये श्रमण के मूल व्रत हैं। अष्टांग योग में महाव्रतों को यम कहा गया है। प्राचार्य पतञ्जलि के अनुसार महावत जाति, देश, कोल ग्रादि की सीमानों से मुक्त एक सार्वभौम साधना है।०८ महाव्रतों का पालन सभी के द्वारा निरपेक्ष रूप से किया जा सकता है। वैदिक परम्परा की दृष्टि से संन्यासी को महावत का सम्यक् प्रकार से पालन करना चाहिए, उसके लिए हिंसाकार्य निषिद्ध हैं।१०६ असत्य भाषण और कटु भाषण भी बj है।१० ब्रह्मचर्य महाव्रत का भी संन्यासी को पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए / संन्या जल-पात्र, जल छानने का वस्त्र, पादुका, प्रासन आदि कुछ प्रावश्यक वस्तुएं रखने का विधान है ।''धातुपात्र 105 पाचारांग 2 / 5 / 141, 206 / 1152 106 प्रश्नव्याकरणसूत्र 10 107 (क) बृहत्कल्पभाष्य, खण्ड 3, 2883-12 (ख) हिस्ट्री प्रॉफ जैन मोनाशिज्म, पृ. 269-277 108 जाति-देश-काल समयानवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम् / —योगदर्शन 2 / 31 109 महाभारत, शान्ति पर्व 9 / 19 110 मनुस्मृति 6 / 47-48 111 देखिए-धर्मशास्त्र का इतिहास, पाण्डुरंग वामन काणे, भाग 1, पृ. 413 [ 37 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org